Biology Class 9 Chapter 3 Notes in Hindi | जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) | Best Notes in Hindi | 

BSEB Biology Class 9 Chapter 3 Notes in Hindi | जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) | Best Notes in Hindi | 

दोस्तों यह पोस्ट आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | Biology Class 9 Chapter 3 Notes in Hindi | इस Chapter का नाम “जीवों में विविधता” (Diversity in Living Organisms) है | दोस्तों हमने इस Chapter का एक छोटा सा नोट्स तैयार किया है जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी है | इस पोस्ट में जीवों में विविधता पाठ से जुड़ी एक एक पॉइंट परिभाषा के द्वारा परिभाषित किया गया है | जिसे आप कम से कम समय में अच्छे से तैयारी कर सकते हैं और प्रथम श्रेणी से पास हो सकते हैं | Biology Class 9 Chapter 3 Notes in Hindi |

Table of Contents

Biology Class 9 Chapter 3 Notes in Hindi | जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) | Best Notes in Hindi | 

जैव विविधता :- 

पृथ्वी पर जीवन की असीमित विविधता और असंख्य जीव है | इसके विषय में हमें जानने के लिए हमें जीवो को समानता व असमानता के आधार पर वर्गीकृत करना पड़ेगा | क्योंकि लगभग 2000000 प्रकार की जीव जंतु का बाह्य, आंतरिक, कंकाल पोषण का तरीका वह आवास का अध्ययन करना सुगम नहीं है | 

सन 1758 ईस्वी में कार्ल लीनियस ने जंतुओं और पौधों को दो अलग-अलग साम्राज्य में बांटा :- 

  • जंतु साम्राज्य या जंतु जगत 
  • वनस्पति साम्राज्य या वनस्पति जगत

वर्गीकरण :- 

अध्ययन की सुविधा के लिए जंतुओं और पौधों को अलग-अलग समूहों, वर्गों, उपवर्गों आदि में विभाजित करने की क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है | 

वर्गिकी :- 

जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जीव धारियों के वर्गीकरण के संबंध में अध्ययन किया जाता है, वर्गिकी कहलाता है | 

जंतुओं और पौधों में अंतर :- 

  • जंतु गतिशील होते हैं जबकि पौधे स्थिर रहते हैं। 
  • जंतु अपने भोजन का संश्लेषण नहीं कर पाते  क्योंकि उनके शरीर में पर्णहरित नहीं होता है।  इसके विपरीत पौधों में पर्णहरित होता है जिसके कारण वे सूर्य की विकिरण ऊर्जा के प्रयोग से अपना भोजन स्वयं संश्लेषित कर लेते हैं | 
  • जंतुओं में वृद्धि एक निश्चित आयु तक की होती है जबकि पौधों में वृद्धि प्रायः जीवन प्रयत्न चलते रहते हैं | 

पदानुक्रमणीय वर्गीकरण :- 

वर्गीकरण की उपयुक्त इकाइयों के आधार पर किसी जंतु या पौधे का वर्गीकरण किया जाता है, पदानुक्रमणीय वर्गीकरण कहलाता है। 

साम्राज्य फाईमलवर्गऑर्डर कुल वंश जाती 

द्विनाम पद्धति :- 

ऐसी पद्धति जिसमें किसी जंतु या पौधे के नाम में दो शब्द का प्रयोग किया जाए, वर्गीकरण की द्विनाम पद्धति  कहलाती है | 

     कार्ल लीनियस  ने 1753 ईस्वी में जंतुओं और पौधों के वर्गीकरण की एक विशेष पद्धति की शुरुआत किया था | उस पद्धति को वर्गीकरण की  द्विनाम पद्धति कहा जाता है | 

द्विनाम पद्धति के अनुसार :- 

  •  प्रत्येक जंतु या पौधे का नाम दो शब्दों के द्वारा बनाया जाए। 
  •  नाम के दोनों शब्दों में से पहला वंश का नाम होगा | 
  •  नाम के दोनों शब्दों में से दूसरा शब्द जातीय नाम होगा | 

लीनियस की द्विनाम पद्धति का महत्व :- 

  • यह पद्धति शाश्वत और स्वर्ग मान्य है अर्थात इसे पूरे विश्व में स्वीकार किया है। 
  • भाषा बदलने पर भी इस पद्धति द्वारा किया गया नामकरण सदैव वही रहता है | 
  • यह पद्धति किसी जंतु अथवा पादप के संबंध में सूचनाओं का आदान-प्रदान में सदैव सुविधाजनक रहता है | 

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जैव-विकास :- 

लंबे समय अंतराल में जीवधारियों के अंदर उत्पन्न होने वाली विभिन्नताओं, जटिलताओं या परिवर्तनों को जैव विकास कहते हैं |

वर्गीकरण के लाभ :- 

  • वर्गीकरण से जीव धारियों के अध्ययन में सुविधा होती है | 
  • वर्गीकरण से किसी जीवधारी की स्थिति का पता करने में उसी प्रकार की सुविधा होती है जैसे किसी विशाल लाइब्रेरी में किसी विशेष पुस्तक की स्थिति पता करने में सुविधा होती है | 
  • वर्गीकरण से किसी भी जीव के संबंध में अधिक से अधिक जानकारी कम से कम समय में प्राप्त कर सकते हैं | 
  • वर्गीकरण से जीव धारियों के विकास के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है | 
  • वर्गीकरण से जीवधारियों के पारस्परिक संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है | 

कोशिका का प्रकार :- 

  • प्रोकैरियोटिक कोशिका :- ये प्राथमिक अल्पविकसित कोशिकाएं हैं, जिनमें केन्द्रक बिना झिल्ली के होता है | 
  • यूकैरियोटिक कोशिका :- ये विकसित कोशिकाएं जिनमें अंगक व पूर्ण रूप से विकसित केन्द्रक युक्त होती है। 

संगठन का स्तर :- 

कोशिका स्तर :- सभी जीव कोशिका के बने होते हैं जो जीवन की मौलिक संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती है | 

उत्तक स्तर:-  कोशिकाएं संगठित हो उत्तक का निर्माण करते हैं | उत्तक कोशिकाओं का समूह होता है | जिसमें कोशिकाओं की संरचना तथा कार्य का एक समान होते हैं |

अंग स्तर :-  विभिन्न उत्तक मिलकर अंग का निर्माण करते हैं जो किसी के कार्य को पूर्ण करते हैं | 

अंग तंत्र स्तर :-  विभिन्न अंग मिलकर अंग तंत्र का निर्माण करते हैं जो जटिल बहूकोसीय जीवों में विभिन्न जैविक क्रियाएं करते हैं |  

प्रोटिस्टा :- 

  • यूकैरियोटिक, एक कोशीय 
  • स्वपोषी या विषमपोषी 
  • गमन के लिए सीलिया, फ़्लैजेला , कूटपाद संरचनाएं पाई जाती है | 
  • शैवाल,डायऍटम,अमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना। 

कवक या फंजाई :- 

  • यूकेरियोटिक व विषमपोषी, बहु कोशिका 
  • यीस्ट एककोशिकीय कवक है जो अवायवीय श्वसन करता है |
  • कोशिका भित्ति कठोर, जटिल शर्करा व काइटिन की बनी होती है। 
  • कुछ शैवाल व कवक दोनों सहजीवी संबंध बनाकर साथ रहते हैं | शैवाल कवक को भोजन प्रदान करता है व कवक रहने का स्थान प्रदान करता है ये जीव लाइकेन कहलाते हैं और इस अंतर्संबंध को सहजीविता कहते हैं | 

पादप :- 

पादप जगत का मुख्य प्रकाश संश्लेषण का होना है | 

  • यूकैरियोटिक, बहु कोशिका
  • स्वपोषी 

उप जगत :- 

जिन पौधों में फूल या जननांग बाहर प्रकट नहीं होते हैं | अर्थात ढक के होते हैं | 

प्लांटी :- 

  • इस समूह के सदस्य बहू  कोशिक, यूकैरियोटिक जीव है जिनमें कोशिका भित्ति पाई जाती है | 
  • ये स्वपोषी होते हैं, इसमें पर्णहरित (क्लोरोफिल) पाया जाता है | पर्णहरित कार्बन डाइऑक्साइड और जल की सहायता से सूर्य के प्रकाश में यह अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं | 

एनिमेलिया :- 

  • इस समूह के अधिकतर जी विषमपोषी होते हैं | 
  • यह अधिकांशत गतिशील होते हैं | 

प्लांटी हरे पौधे का साम्राज्य :- 

  1. थैलोफाइटा
  2. ब्रायोफाइटा 

थैलोफाइटा :- 

  • पौधे का शरीर जड़ तथा पत्ती में विभाजित नहीं होता बल्कि एक थैलश है | 
  • सामान्यतः शैवाल कहते हैं | 
  • कोई संवहन उत्तक उपस्थित नहीं | 
  • जनन विजड़ू के द्वारा मुख्यतः जल में पाए जाते हैं | 

उदाहरण :- अल्वा , स्पाइरोगाइरा, क्लेडोफोरा ,यूलोथ्रिक्स 

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ब्रायोफाइटा :- 

ऐसे हरे पौधों का समूह जो नम और जलीय स्थानों पर होते हैं, जिनका पादप शरीर, वास्तविक जड़ तना और पत्ती में विभक्त नहीं किया जा सकता है, जिनमें जोड़ों के स्थान पर राज वाइट पाए जाते हैं और जिनके जीवन चक्र में पीढ़ी एकांतरण  पाया जाता है, बुरा ब्रायोफाइटा कहलाता है | 

  • सरलतम पौधे, जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं
  • कोई संवहन उत्तक उपस्थित नहीं
  • जीवाणु द्वारा जनन

 उदाहरण:- फ्यूनेरिया ,रिक्सिया, मार्केंशिया 

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टेरिडोफाइटा :- 

ऐसे पौधों का समूह जिनका शरीर वास्तविक जड़,तना और पत्तियों में भी वक्त होता है, जिनमें पूर्ण विकसित संवहन तंत्र पाए जाते हैं और जिनमें बीजों का विकास नहीं होता है, टेरिडोफाइटा कहलाता है। 

  • पादप का शरीर तन्ना, जड़े व पत्तियों में विभक्त होता है | 
  • संवहन उत्तक उपस्थित है | 
  • बहुकोशिकीय, विषाणु द्वारा जनन 

  उदाहरण:-  मार्सेलिया, फर्न 

फैनरोगैम :- 

इन पौधों में फूल या जननांग स्पष्ट दिखाई देते हैं |  तथा बीज उत्पन्न करते हैं |  

फैनरोगैम दो प्रकार के होते हैं :- 

  1. जिम्नोस्पर्म
  2. एंजियोस्पर्म 

जिम्नोस्पर्म :- 

  • बहु वर्षीय, सदाबहार, काष्ठीय 
  • शरीर जड़, तना व पत्ते में विभक्त 
  • संवहन उत्तक उपस्थित 
  • नग्न बीज,बिना फल और फूल 

  उदाहरण:-  पाइनस, साइकस 

एंजियोस्पर्म :- 

फूल वाले पौधे :- 

  • एक बीज पत्री
  • द्विबीजपत्री
  • बीज फल के अंदर
  • भ्रूण के अंदर पतियों जैसे बीज पत्र पाए जाते हैं |
  • जब पौधा जन्म लेता है तो वे हरी हो जाती हैं, प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं | 
  • पूर्ण  संवहन उत्तक उपस्थित 

एंजियोस्पर्म समूह के पौधे दो प्रकार होते हैं :- 

  • एकबीजपत्री
  • द्विबीजपत्री

एक बीज पत्री :-  ऐसे पौधे जिनके बीजों में दो दाले नहीं पाई जाती है अर्थात जिनके बीजों में केवल एक ही बीज पत्र पाया जाता है एक बीजपत्री पौधे कहते हैं | 

द्विबीजपत्री :-  ऐसे पौधे जिन के बीजों में दो दाले होती हैं, उन्हें द्विबीजपत्री पौधे कहते हैं | 

जंतु जगत में वर्गीकरण का आधार :- 

संगठन का स्तर :- 

कोशिकीय स्तर :-  इस स्तर पर जीव की कोशिका बिखरे सहित में होती है | 

उत्तक स्तर :- इस स्तर पर कोशिकाएं अपना कार्य संगठित होकर उत्तर के रूप में करती हैं | 

अंग स्तर :-  उत्तक संगठित होकर अंग निर्माण करता है जो एक विशेष कार्य करता है | 

अंग तंत्र स्तर :-  अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं और प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है | 

समिति :- 

असममिति :- किसी भी केंद्रित अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती हैं | 

अरिया सममिति :- किसी भी केंद्रित अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित करती हैं | 

द्विपार्श्व सममिति :-  जब केवल किसी एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएं और बाएं भाग में बांटा जा सकता है | 

द्विकोरिक तथा त्रिकोरकी  एक संगठन :- 

द्विकोरिक :- जिन प्राणियों में कोशिकाएं दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती हैं | 

  • बाह्य
  • आंतरिक

त्रिकोरकी :- वे  प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर मिजोडर्म भी होता है | 

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प्रगुहा ( सीलोम ) 

प्रगुही :-  मिजोडर्म से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा कहते हैं |प्रगुही प्राणी में देहगुहा उपस्थित होती है | 

कूट-गुहिक प्राणी :- कुछ प्राणियों में यह गुहा मिजोडर्म से आच्छादित ना होकर बल्कि मिजोडर्म एक्टोडर्म एवं एंडोडर्म के बीच बिक्री हुई थैली के रूप में पाई जाती हैं | 

अगुहिय  :- जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती है | 

 पृष्ठ रज्जू ( नोटों कोर्ड ) :- 

नोटों कोर्ड  एक छड़ की तरह लंबी संरचना है जो जंतुओं के पृष्ठ भाग पर पाई जाती हैं यह तंत्रिका उत्तक को आहार नाल से अलग करती है | 

कार्डेट :- पृष्ठ रज्जू युक्त प्राणी को कशेरुकी कहते हैं | 

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फाइलम- पोरिफेरा :- 

  • कोशिकीय स्तर संगठन
  • चलो जंतु
  • पूरा शरीर छिद्र युक्त
  • बाह्य स्तर स्पंजी जंतुओं का बना

फाइलम सीलेन्ट्रेटा :- 

  •  उत्तकीय स्तर 
  • अगुहिय  
  • अरीय सममित , द्विस्तरीय 
  • खुली गुहा 

एस्केलमिंथिज ओर निमेटोड :- 

  • शरीर सूक्ष्म से कई सेमी तक | 
  • त्रिकोरक , द्विपार्श्व सममित 
  • वास्तविक देहगुहा का अभाव 
  • कूट सिलोम उपस्थिता 
  • सामान्यतः परजीवी | 

एनीलिडा :- 

  • द्विपार्श्व ,सममित  एवं त्रिकोरिक
  • नम भूमि, समुद्र में पाए जाने वाले | 
  • वास्तविक देहगुहा वाले 
  • उभयलिंगी, लैंगिक या स्वतंत्र
  • शरीर खंड युक्त

आर्थोपोडा :- 

  • जंतु जगत की 80% जीव इस फाइलम से संबंधित है | 
  • पैर खंड युक्त व जुड़े हुए और सामान्यतः कीट कहलाते हैं | 
  • शरीर शिर , वक्ष व उधर  में विभाजित |  
  • अग्रभाग पर संवेदी स्पर्शक उपस्थित | 
  • बाह्य कंकाल काइटिन का 
  • खुला परिसंचरण तंत्र | 

मोलस्का :- 

  • दूसरा बड़ा फाइलम 90000 जातियां | 
  • शरीर मुलायम द्विपार्श्व सममित 
  • बाह्य भाग कैल्शियम की खोल से बना 
  •  नर व मादा अलग

इकाइनोडर्मेटा :- 

  • समुद्री जीव
  • शरीर तारे की तरह, गोल या लंबा
  • शरीर के बाह्य सतह पर कैल्शियम कार्बोनेट का कंकाल एवं कांटे पाया जाता है | 
  • शरीर अखंडित त्रिकोरक देहगुहा युक्त
  • लिंग अलग-अलग

कार्डेटा :- 

  • द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी देहगुहा वाले | 
  • शिलोम उपस्थित, अंग तंत्र स्तर संगठन 
  •  मेरुरज्जु उपस्थित
  •  पूछ जीवन की किसी अवस्था में उपस्थित
  •  कशेरुक दंड उपस्थित

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कार्डेटा के प्रकार :- 

  1.  प्रोटोकार्डेटा
  2.  वर्टीब्रेटा

प्रोटोकार्डेटा :- 

  • क्रीमी की तरह के जंतु, समुद्र में पाए जाते हैं | 
  • द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी  एवं देहगुहा युक्त
  • श्वसन गिल्स द्वारा
  • लिंग अलग-अलग

वर्टीब्रेटा :- 

  • द्विपार्श्व सममित , त्रिकोरकी देहगुहा वाले जंतु है | 
  • अंग तंत्र स्तर का संगठन
  • नोटोकार्ड मेरुरज्जु में परिवर्तित
  • युम्मित्त क्लोम थैली

वर्ग मत्स्य :- 

  • जलीय जीव
  • त्वचा शल्क अथवा प्लेटो में ढकी होती है |
  • द्विपार्श्व सममित धारा रेखीय शरीर जो तैरने में मदद करता है | 
  • हृदय  दो कक्ष युक्त ठंडे खून वाले
  • अंडे देने वाला, जिन से नए जीव बनते हैं | 

एंफीबिया जल स्थलचर :- 

  • जनन के लिए जल आवश्यक | 
  • त्वचा पर श्लेष्म ग्रंथिया उपस्थित 
  • शीत रुधिर, हृदय तीन कोष्टक वाला 
  • श्वसन गिल फेफड़ों द्वारा 
  • पानी में अंडे देने वाले 

 उदाहरण:- टोड , मेंढक, सैलामेंडर 

 सरीसृप :- 

  • अधिकांश थलचर 
  • शरीर पर शल्क 
  • शीत रुधिर असम तापी 
  • ह्रदय त्रिकक्षीय लेकिन मगरमच्छ का हृदय 4 कक्षीय 
  • कवच युक्त अंडे देते हैं | 

 पक्षी वर्ग :- 

  • गर्म खून वाले जंतु
  • चार कक्षीय हृदय होता है | 
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा 
  • इनकी अस्थियां खोखली होती है
  • शरीर पर पंख पाए जाते हैं
  • शरीर सिर, गर्दन धड़ व पुंछ में विभाजित
  • अग्रपाद में रूपांतरित
  • नर व मादा अलग 

उदाहरण:-  कौवा, कबूतर, मोर आदि

स्तनपायी स्तनधारी :- 

  • त्वचा बाल खेद और तेल ग्रंथि युक्त, गर्म रुधिर वाले 
  • स्तन  ग्रंथियां, बाह्य कर्ण  उपस्थित 
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा
  • शिशुओ  को जन्म
  • निषेचन क्रिया अंतरिक्ष 
  • हृदय चार कक्षीय
  • मां बाप द्वारा शिशु की देखभाल

 उदाहरण :-  मनुष्य, कंगारू, हाथी, बिल्ली, चमगादड़ आदि |  

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