BSEB Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | NCERT Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvements in Food Resources )| Best Notes For 9th Class |
यह पोस्ट हम आपके लिए लाए हैं | Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | इस Chapter का नाम “ खाद्य संसाधनों में सुधार” (Improvements in Food Resources) है | दोस्तों हमने Biology Class 9 Chapter 5 “खाद संसाधनों में सुधार” पाठ का Short Notes तैयार किया है जो आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | जिसे आप बहुत कम समय में अच्छे से तैयारी कर सकते हैं | Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi |
Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvements in Food Resources )| Best Notes For 9th Class |
फसलों के प्रकार :-
अनाज :- इसमें गेहूं ,चावल, मक्का,बाजरा आदि सम्मिलित है | ये हमे कार्बोहाइड्रेट प्रदान करते है |
बीज :- पौधे में पाए जाने वाले सभी बीज खाने योग्य नहीं होते , जैसे:- सेब का बीज, तथा चेरी का बीज| खाने वाले बीजों में सरसों, सोयाबीन, तिल तथा मूंगफली ये हमे वसा प्रदान करते हैं |
दालें :- इनमें चना, मोटर,( काला चना ,हरा चना ) तथा मसूर यह हमें प्रोटीन प्रदान करते हैं |
सब्जियां, मसाले व फल :- ये सब हमें विटामिन तथा खनिज लवण प्रदान करते हैं |
- फल जैसे :- सेब, आम ,चेरी, केला, तरबूज
- सब्जियां जैसे:- पालक, पत्तेदार सब्जियां, मूली , गोभी, बंधा गोभी |
- मसाले जैसे :- मिर्च, काली मिर्च,
फसल चक्र :-
सभी फसलों को अपनी वृद्धि तथा जीवन चक्र करने के लिए अलग-अलग परिस्थितियों ( तापमान,नमी)तथा अलग-अलग दीप्तिकाल ( सूरज की रोशनी) की जरूरत होती है |
फसल उत्पादन के लिए आवश्यक परिस्थितियां :-
फसल उत्पादन के लिए जलवायु संबंधी विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकता होती है | उन परिस्थितियों में दोस्त सर्व प्रमुख परिस्थितियां है – दीप्तिकालिता तथा तापमान |
दीप्तिकालिता :- वे दशाएँ जो सूर्य के प्रकाश की अवधि से संबंधित होती है ,दीप्तिकालिता कहलाता है |
तापमान :- पौधों की वृद्धि और विकास के लिए विशेष तापमान की आवश्यकता होती हैं | तापमान वर्षा तथा आंत्द्रता को नियंत्रित करता है तथा जल चक्र को संचालित करता है और कृषि के लिए उपयुक्त तापमान का अत्यधिक महत्व होता है |
भारत में मुख्यतः दो ऋतुएँ होती है :-
रबी फसल :- शीत ऋतु की वे फसलें जो प्रायः नवंबर से अप्रैल माह के बीच हुआ ही जाती है, रबी फसल कहलाती है | जैसे :- गेहूं, चना, मटर, सरसों इत्यादि |
खरीफ फसल :- वे फसलें जो मुख्यतः ग्रीष्म काल से लेकर वर्षा काल के बीच अर्थात जून माह से आरंभ होकर अक्टूबर माह तक उगाई जाती है , खरीफ फसल कहलाती है | जैसे :- धान, अरहर , मक्का, सोयाबीन, मूंग इत्यादि |
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Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi |
फसल उत्पादन में सुधार :-
फसल उत्पादन में सुधार की प्रक्रिया निम्न है |
- फसल की किस्मों में सुधार
- फसल उत्पादन प्रबंधन
- फसल सुरक्षा प्रबंधन
अभियांत्रिकी :-
पौधों में एक्क्षिक गुणों वाले बीजों का प्रत्यारोपण करने की तकनीक को अनुवांशिक अभियांत्रिकी कहते हैं |
फसल की किस्म में सुधार :-
फसल की किस्में में सुधार के कारक है अच्छे और स्वस्थ बीज संकरण |
उच्च उत्पादन :- हर साल प्रति एकड़ फसल की उत्पादकता बढ़ाना |
उन्नत किस्में :- उन्नत किस्में, फसल उत्पादन की गुणवत्ता, प्रत्येक फसल में भिन्न होती हैं। दाल में प्रोटीन की गुणवत्ता, तिलहन में तेल की गुणवत्ता और फल तथा सब्जियों का संरक्षण महत्वपूर्ण है।
जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता :-
जैविक ( रोग, कीट तथा नेमाटोड ) तथा अजैविक ( सुखा, क्षारता, जल क्रांति , गर्मी, तथा पाला ) परिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है | इन परिस्थितियों को सहन कर सकने वाली फसल की हानि कम हो जाते हैं |
व्यापक अनुकूलता :- व्यापक अनुकूलता वाली किस्मों का विकास करना विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में फसल उत्पादन को स्थाई करने में सहायक होगा |
फसल उत्पादन में सुधार :-
किसानों के द्वारा की गई विभिन्न प्रकार की तकनीक इस्तेमाल की जाती हैं जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि होती हैं, ये निम्न है :-
- पोषक प्रबंधन
- सिंचाई
- फसल को उगाने के तरीके
पोषक प्रबंधन :-
दूसरे जीवो की तरह, पौधों को भी वृद्धि हेतु कुछ तत्वों ( पोषक पदार्थों ) की आवश्यकता होती है उन तत्वों को ही हम पोषक तत्व होते हैं |
जैसे :- कार्बन, पानी हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन तथा 13 पोषक तत्व मिट्टी से प्राप्त होते हैं | जहां से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं वह हैं हवा, पानी, मिट्टी |
बृहद पोषक तत्व :- नायट्रोजन वायु व भूमि से प्राप्त होती हैं।जिस की अधिक मात्रा में पौधों को आवश्यकता होती हैं| अन्य वृहद पोषक तत्व है | फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर |
सूक्ष्म पोषक तत्व :- लौह तत्व, मैग्नीज की कम मात्रा में आवश्यकता होती हैं | अन्य है बोरान, जिंक, कॉपर,मॉली बिडमन , क्लोरीन |
खाद तथा उर्वरक :-
मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए खाद्य तथा उर्वरक की आवश्यकता होती हैं | फलस्वरूप फसल की उपज में वृद्धि होती हैं |
खाद :-
जैविक अपशिष्ट जैसी कृषि अपशिष्ट एवं पशुओं के उत्सर्जी पदार्थों के जैविक अपघटन से प्राप्त हुए पदार्थ जो पौधों की वृद्धि तथा उनके समुचित विकास के लिए उपयोगी होते हैं, खाद कहलाते हैं |
खाद के विभिन्न प्रकार :-
कंपोस्ट खाद :- पौधों व उनके अवशेष पदार्थों, कूड़े, करकट, पशुओं के गोबर, मनुष्य के मल मूत्र आदि कार्बनिक पदार्थों को जीवाणु तथा कवकों की क्रिया के द्वारा खाद रूप में बदलना कंपोस्टिंग कहलाता है |
वर्मी कंपोस्ट खाद :- जब कंपोस्ट में केंचुए के उपयोग से तैयार करते हैं उससे वर्मी कंपोस्ट कहते हैं |यहां केचुआ, कृषकों का मित्र एवं भूमि के आंत कहा जाता है |
हरी खाद :- फसल उगाने से पहले खेतों में कुछ पौधे, जैसे पटसन, मूंग, अथवा ग्वार उड़ा देते हैं और तत्पश्चात उन पर हल चलाकर खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है | यह पौधे हरी खाद में परिवर्तित हो जाते हैं जो मिट्टी को नाइट्रोजन तथा फास्फोरस से परिपूर्ण करने में सहायक होते हैं |
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उर्वरक :-
उर्वरक कारखानों में तैयार किए जाते हैं | ये रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से बनाए जाते हैं | इनमें अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्व जैसे :- नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम पाए जाते हैं |
खाद्य तथा उर्वरक में अंतर :-
खाद | उर्वरक |
यह मुख्य रूप से कार्बनिक पदार्थ होते हैं | यह प्राकृतिक पदार्थ के बने होते हैं | खाद सस्ती होती है तथा घर तथा खेत में बनाई जा सकती हैं | खाद धीरे-धीरे पौधे द्वारा अवशोषित की जाती हैं | क्योंकि ये पानी में घुलनशील होते हैं | इसको आसानी से भंडारण तथा स्थानांतरण कर सकते है | | ये अकार्बनिक होते हैं | यह रासायनिक पदार्थ से मिलकर बने होते हैं | उर्वरक महंगे तथा फैक्ट्रियों में तैयार किए जाते हैं | उर्वरक आसानी से फसल को उपलब्ध हो जाते हैं | ये पानी में घुलनशील होते हैं | इसका स्थानांतरण सरल विधि से नहीं किया जा सकता | |
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सिंचाई :-
फसलों को समय -समय से जल प्रदान करने की प्रक्रिया को सिंचाई कहते हैं |
सिंचाई के तरीके :-
खोदे गए कुएं :- पानी बैलों की उपयोग या पंप द्वारा निकाला जाता है |
नलकूप :- नलकूप में बहुत नीचे पानी होता है | जिससे सिंचाई होती है | मोटर पंप के इस्तेमाल से पानी ऊपर लाया जाता है |
नहरें :- इनमें पानी एक या अधिक जलाशयों अथवा नदियों से आता है | मुख्य नहर से शाखाएं निकलती है जो विभाजित होकर खेतों में सिंचाई करती हैं |
नदी उन्नयन प्रणाली :- इस प्रणाली में पानी सीधे नदियों से ही पंप द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है | इस सिंचाई का उपयोग नदियों के पास वाली खेती में लाभदायक रहता है |
तालाब :- आपत्ती के समय प्रयोग में आने वाले वे छोटे तालाब, छोटे जलाशय होते हैं, जो छोटे से क्षेत्र में पानी का संग्रह करते हैं |
पानी का संरक्षण :- वर्षा के पानी को सीधे किसी टैंक में सुरक्षित इकट्ठा कर लिया जाता है बाद में इस्तेमाल के लिए, ये मृदा अपरदन को भी दूर करता है |
वर्षा जल संग्रहण :-
वह प्रक्रिया जिसमें पृथ्वी पर गिरने वाले वर्षा जल को रोका जाता है और भूमि में रिसने के लिए तैयार किया जाता है | वर्षा जल संग्रहण कहलाती है |
फसल पैटर्न :-
फसल की वृद्धि हेतु अलग अलग प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं जिससे कि नुकसान कम से कम तथा ऊपर अधिक से अधिक हो |
- मिश्रित खेती
- अंतरा फसली करण
- फसल चक्र
मिश्रित खेती :- दो या दो से अधिक फसल को एक साथ उगाना एक ही भूमि में , मिश्रित खेती कहलाता है | उदाहरण :- गेहूं और चना, गेहूं और सरसों, मूंगफली तथा सूरजमुखी |
मिश्रित फसल की खेती करने से हानि होने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि फसल के नष्ट हो जाने पर भी फसल उत्पादन की आशा बनी रहती हैं |
अंतरा फसली करण :- अंतरा फसली करण में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न प उगाते हैं | कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकांतर में स्थित दूसरे पंक्तियों में दूसरी प्रकार की फसल उगाते हैं |
उदाहरण = सोयाबीन+ मक्का, बाजरा+ लोबिया |
फसल चक्र :-
किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के गाने को फसल चक्र कहते हैं |
अगर बार-बार एक ही खेत में एक ही प्रकार की खेती की जाती है तो एक ही प्रकार के पोषक तत्व मृदा से फसल द्वारा प्राप्त किए जाते हैं | बार-बार मृदा से पोषक तत्व फसल द्वारा प्राप्त करने पर एक ही प्रकार के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं | अतः हमें अलग-अलग प्रकार की खेती करने चाहिए |
विशेषताएं :-
- मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती हैं |
- ये कीट तथा खरपतवार को नियंत्रित रखते हैं |
- एक बार मिट्टी को उपजाऊ बनाने के बाद कई प्रकार की फसल सुचारु रुप से उगाई जा सकते हैं |
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फसल सुरक्षा प्रबंधन :-
रोग कारक जीवों तथा फसल को हानि पहुंचाने वाले कारकों से फसल को बचाना ही ,फसल सुरक्षा प्रबंधन कहलाता है | इस प्रकार की कठिनाइयों से बचने के लिए कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं |
- फसल की वृद्धि के समय कीट व पीड़कनाशी जीवों से
- अनाज के भंडारण के समय
पीड़कनाशी :- जीव जो फसल को खराब कर देते हैं | जिससे वह हम मानव उपयोग के लायक नहीं रहती, पीड़क कहलाते हैं |
Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi | Biology Class 9 Chapter 5 Notes in Hindi |
पीड़क कई प्रकार के होते हैं :-
खरपतवार :- फसल के साथ-साथ उगने वाले अवांछनीय पौधे, खरपतवार कहलाते हैं | उदाहरण:- जैंथियम, पार्थेनियम,|
किट :- किट विभिन्न प्रकार से फसल तथा पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं | वह जड़ , तन्ना तथा पतियों को काट देते हैं | पौधों के विभिन्न भागों के कोष रस को चूस कर नष्ट कर देते हैं |
रोगाणु :- कोई जीव जैसे बैक्टीरिया, फंगस तथा वायरस जो पौधों में बीमारी पैदा करते हैं | रोगाणु कहलाते हैं | ये फसल में पानी, हवा तथा मिट्टी द्वारा पहुंचते हैं |
अनाज का भंडारण :-
पूरे साल मौसम के अनुकूल भोजन प्राप्त करने के लिए, अनाज को सुरक्षित स्थान पर रखना अनिवार्य है, परंतु भंडारण के समय अनाज कितने ही कारणों से खराब और व्यर्थ हो जाते हैं | जैसे :-
जैविक कारक :- जीवित प्राणियों के द्वारा जैसे किट , चिड़िया, चिचड़ी, बैक्टीरिया, फंगस इत्यादि |
अजैविक कारक :- निर्मित कार्गो द्वारा जैसे नामी, तापमान में अनियमितता आदि | ये कारक फसल की गुणवत्ता तथा भार में कमी, रंग में परिवर्तन तथा अंकुरण के निम्न क्षमता के कारण हैं |
कार्बनिक खेती :-
कीटनाशक तथा उर्वरक का प्रयोग करने के अपने ही दुष्प्रभाव हैं | ये प्रदूषण फैलाते हैं लंबे समय के लिए मिट्टी की उपजाऊ गुणवत्ता को कम करते हैं जो हम अनाज, फल, तथा सब्जियां प्राप्त करते हैं उनमें हानिकारक रसायन मिले होते हैं | ऑर्गेनिक खेती में न या न के बराबर कीटनाशक तथा उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है |
भंडारण उपकरण :- कुछ भंडारण उपकरण जैसे पूसा धानी, पूसा कोठार, पंत कुठला आदि उपकरण एवं संरचनाएं अपनाने चाहिए | साफ तथा सूखे दाने को प्लास्टिक बैग में सुरक्षित रखना चाहिए | तू इनमें वायु , नमी, तापक्रम का प्रभाव नहीं होता बाहर के वातावरण का कोई प्रभाव नहीं होता |
पशुपालन :-
भोजन उत्पादन एवं विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा पशुओं की सुव्यवस्थित और सुनियो चित देखभाल किया जाना एवं उनके सफलतापूर्वक प्रजनन की व्यवस्था किया जाना है पशुपालन कहलाता है |
1987 की पशुगणना के अनुसार विश्व के देशों की कुल संख्या का 50% अकेले भारत में है | देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 50- 52% भैसों से,45% गायों तथा 3- 5% भेड़ बकरियों से होता है | विश्व में दूध उत्पादन के क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत का दूसरा स्थान है |
भारत में गायों की 32 एवं भैंसों के 7 नस्लें पाई जाती हैं |
पशु कृषि का मुख्य उद्देश्य :-
- दूध प्राप्त करने के लिए
- कृषि कार्य करने के लिए
- खेत को जोतने के लिए
- यातायात में प्रयोग हेतु
पशुओं की देखभाल :-
सफाई :-
- पशु की सुरक्षा के लिए हवादार तथा छायादार स्थान होना चाहिए |
- पशुओं की चमड़ी की लगातार घोसी ब्रशिंग होनी चाहिए |
- पानी इकट्ठा ना हो इसके लिए ढलान वाले पशु आश्रय होने चाहिए |
भोजन :-
- भूसे में मुख्य रूप से रेशा होना चाहिए
- गाढ़ा प्रोटीन होना चाहिए |
- दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए खाने में विटामिन तथा खनिज होने चाहिए |
बीमारी से बचाव :-
पशुओं की मृत्यु हो सकती हैं, जो दूध उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं | एक समस्त पशु नियमित रूप से खाता है और ठीक ढंग से बैठता व उठता है | पशु के बाह्य परजीवी तथा अंतर परजीवी दोनों ही होते हैं |
बाह्य परजीवी द्वारा त्वचा रोग हो सकते हैं | अंतः परजीवी अमाशय, आंत तथा यकृत को प्रभावित करते हैं |
बचाव :-
रोगों से बचाने के लिए पशुओं को टीका लगाया जाता है | ये रोग बैक्टीरिया तथा वायरस के कारण होते हैं |
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कुक्कुट (मुर्गी) पालन :-
अंडे तथा कुक्कुट मांस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मुर्गी पालन किया जाता है | दोनों हमारे भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाते हैं |
ब्रॉलर्स :- जब चूजों को मांस के लिए पाला जाता है, तो उससे ब्रॉलर्स कहते हैं | ये जन्म के 6- 8 हफ्ते के अंदर इस्तेमाल किए जाते हैं |
लेअर :- जब कुक्कुट को अंडों के लिए पाला जाता है उस लेअर कहते हैं | यह जन्म के 20 हफ्ते बाद इस्तेमाल किए जाते हैं, जब ये लैंगिक परिपक्वता के लायक हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप अंडे प्राप्त होते हैं |
मुर्गी उत्पादन :-
मुर्गियों की निम्नलिखित विशेषताओं के कारण संकरण करके नई नई किस्में विकसित की जाती है |
- चूजों की संख्या अधिक व किस्म अच्छी होती हैं |
- कम खर्च में रख रखाव |
- छोटे कद के ब्रायलर माता-पिता द्वारा चूजों की व्यवस्था एक उत्पादन हेतु |
- गर्मी अनुकूलन क्षमता |
- उच्च तापमान को सहने की क्षमता |
मछली उत्पादन :-
हमारे भोजन में प्रोटीन का मछली मुख्य स्रोत है | मछली का उत्पादन दो प्रकार से होता है |
पंख युक्त मछलियां :- स्वच्छ जल में कटला, रोहू, मृगल, कॉमन कार्य का संवर्धन किया जाता है |
कवचीय मछलियां :- जैसे प्रोन, मोलस्का सम्मिलित है |
मधुमक्खी पालन :-
यह वह अभ्यास जिसमें मधुमक्खियों की कॉलोनी को बड़े पैमाने पर रखा व संभाला जाता है और उनकी देखभाल करते हैं, ताकि बड़ी मात्रा में शहद तथा मोम प्राप्त हो सके | अधिकतर किसान मधुमक्खी पालन अन्य आय स्रोत के लिए इस्तेमाल करते हैं | मधुमक्खी पालन या एपिअरिस बहुत बड़ी प्रकार है |
एपियरी :-
एपियरी एक ऐसी व्यवस्था है जिससे अधिक मात्रा में मधुमक्खी के छत्ते मनचाही जगह पर अनुशासित तरीके से इस प्रकार रखे जाते हैं कि इससे अधिक मात्रा में मकरंद तथा पराग एकत्र हो सके |
भारत में मधुमक्खी के प्रकार :-
- एपिस सेरेना इनडिंका सामान्य भारतीय मधुमक्खी है |
- एपीस डोरसता, एपिस फ़्लोरी , छोटी मधुमक्खी |
यूरोपियन मधुमक्खी भी भारत में इस्तेमाल की जाती है इसका नाम है एपिस मेलीफेरा |
- ज्यादा शहद एकत्रित करने की क्षमता |
- जल्दी प्रजनन क्षमता |
- कम डंक मारती है |
- वे लंबे समय तक निर्धारित छते में रह सकती हैं |
चमगाह :-
मधुमक्खियां जिन स्थानों पर मधु एकत्रित करती है उसे मधुमक्खी का चारागाह कहते हैं | मधुमक्खी पुष्पों से मकरंद तथा पराग एकत्र करते हैं |
चारागाह के पुष्पों की किस्में शहद के स्वाद तथा गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं | उदाहरण :- कश्मीर का बादाम बहुत बहुत स्वादिष्ट होता है |
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