China 1962 me pichhe hat gaya tha : भारत-चीन युद्ध के बाद सोवियत संघ के तत्कालीन मुखिया निकिता ख्रुश्चेव अपने विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रोमिको और पोलित ब्यूरो-सदस्य मिखाइल सुस्लोव को साथ लेकर चीन पहुंचे थे।China 1962 me pichhe hat gaya tha
China 1962 me pichhe hat gaya tha| चीन 1962 में पीछे हट गया था
भारत-चीन युद्ध के बाद सोवियत संघ के तत्कालीन मुखिया निकिता ख्रुश्चेव अपने विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रोमिको और पोलित ब्यूरो-सदस्य मिखाइल सुस्लोव को साथ लेकर चीन पहुंचे थे।
वहां उन्होंने चीनी नेताओं की जमकर खिंचाई की थी। हालांकि उस समय अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के चलते चीन पीछे हट गया था, लेकिन धोखेबाज चीन आज भी भरोसे के लायक नहीं है। पढ़िए- ‘जब भारत के लिए चीनी नेताओं से भिड़ गए थे सोवियत नेता ख्रुश्चेव’ का अगला भाग…
हम ‘हिंदुओं’ को करारा जवाब देंगे : अब तक चुप रहे सोवियत विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रोमिको को लगा कि अब उन्हें भी कुछ कहना चाहिए। उनका कहना था कि मॉस्को में भारत के राजदूत ने उन्हें यही बताया कि चीनी पत्र, मामले को सुलझाने के बदले और अधिक उलझाने वाला है। इसे सुनकर माओ त्से तुंग के डिप्टी ल्यू शाओची ताव में आ गए। बोले, मैंने जो पत्र (पेकिंग में) सोवियत दूतावास को दिया था, उसमें लिखा था कि ‘हफ्ते भर के अंदर हम ‘हिंदुओं’ को करारा जवाब देंगे।’ इस पर ख्रुश्चेव ने उनकी चुटकी लेते हुए कहा, ‘हां-हां, उन्होंने फायरिंग भी शुरू की और ख़ुद ही मर भी गए!’
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कुछ समय के लिए बहस का विषय। उत्तरी कोरिया के शासक किम इल सुंग की तथा दलाई लामा की बात होने लगी। ख्रुश्चेव का कहना था कि चीनियों की जगह यदि वे होते, तो दलाई लामा को तिब्बत से भागने नहीं देते। माओ त्से तुंग का तर्क था कि यह संभव ही नहीं था।
सीमा का अतिक्रमण पहले ‘हिंदुओं’ ने किया : इसी के साथ चीनी नेता एक बार फिर आरोप लगाने लगे कि सीमा का अतिक्रमण पहले ‘हिंदुओं’ ने किया। फायरिंग उन्होंने ही शुरू की। 12 घंटे तक लगातार फायरिंग करते रहे। माओ और उनके रक्षा मंत्री ने एक स्वर में कहा कि फायरिंग का जवाब स्थानीय सैनिकों ने दिया, उन्हें ऊपर से कोई आदेश नहीं दिया गया था।
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आपके घमंडीपन का पता चल जाता है : ‘नहीं, हम इसे स्वीकार नहीं करते। हम कम्युनिज़्म के सिद्धांतों पर चलते हैं,’ ख्रुश्चेव का दो टूक उत्तर था। यह कहा-सुनी कुछ समय तक चलती रही। एक ऐसा भी क्षण आया, जब ख्रुश्चेव ने कहा कि ‘मैं तो असल में अपना सूटकेस बांध कर अभी ही यहां से जा सकता हूं, पर नहीं जाऊंगा। …आप लोग दूसरों की आपत्तियां सह तो पाते नहीं और समझते हैं कि आप बड़े पाक-साफ, बड़े शास्त्र सम्मत हैं। इसी से आपके घमंडीपन का पता चल जाता है।’
इस कहासुनी के बाद बहस एक बार फिर भारत और नेहरू पर आ गई। चीनी विदेश मंत्री चेन यी ने ख्रुश्चेव पर निशाना साधते हुए कहा, ‘मैं आपके इस कथन से घोर अपमानित हूं कि भारत के साथ संबंधों का बिगाड़ हमारी करनी है।’ ख्रुश्चेव बोले, ‘मैं भी आपके इस कथन से घोर अपमानित हूं कि हम अवसरवादी हैं। हमें नेहरू का साथ देना चाहिए ताकि वे सत्ता में बने रह सकें। …यदि आप हमें अवसरवादी समझते हैं, कॉमरेड चेन यी, तो अपना हाथ मेरी तरफ़ न बढ़ाएं, मैं उसे स्वीकार नहीं करूंगा।’
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मुझे आपके गुस्से से डर नहीं लगता : ‘मैं भी नहीं,’ चेनयी ने कहा। ‘मैं अब भी कह देता हूं कि मुझे आपके गुस्से से डर नहीं लगता।’ ख्रुश्चेव ने चेन यी के मुंह लगने के बदले विषय बदल दिया और बहस को सोवियत तथा चीनी कम्युनिस्ट पार्टियों के आपसी संबंधों की तरफ मोड़ दिया।
सोवियत संघ और चीन के नेताओं के बीच 2 अक्टूबर, 1959 को हुई इस बातचीत के संलेख से इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि कौन ‘हिंदुओं’ का भाई कहलाने लायक था और कौन नहीं। यह स्थिति आज भी ज्यों की त्यों है। आज भी रूस भारत के बहुत निकट है और चीन बहुत दूर। आज भी चीनी नेताओं की बातों पर कोई भरोसा नहीं होता है।
पंडित नेहरू को एक समय चीनियों पर इतना भरोसा था कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ताइवान वाली पांचवीं स्थायी सीट, भारत के बदले, चीन को दिलवाने पर तुले हुए थे। चीन ने उनके इस भरोसे का सबसे निर्मम उत्तर 20 अक्टूबर 1962 को सवा तीन हज़ार किलोमीटर लंबी भारत की पूरी उत्तर पूर्वी सीमा का अतिक्रमण करने वाले अपने आक्रमण के साथ दिया। यह लड़ाई पूरे एक महीने तक चली और चीन की ओर से एकतरफा युद्ध विराम के साथ 21 नवंबर 1962 को थमी।
अब सवाल यह है कि चीन ने 1962 को 20 अक्टूबर वाले दिन ही भारत पर आक्रमण क्यों किया और भारत की कमजोरियों को जानते हुए भी, 21 नवंबर को खुद ही पीछे क्यों हट गया? उत्तर है, 1962 का वह क्यूबा-संकट, जो क्यूबा में सोवियत मिसाइलों की तैनाती के विरुद्ध अमेरिका की जोरदार धमकियों के कारण पैदा हो गया था। कम्युनिस्ट देश क्यूबा और उसके नजदीक अमेरिकी के राज्य फ्लोरिडा के बीच केवल 500 किलोमीटर की समुद्री दूरी है।
भारत पर आक्रमण का क्यूबा-संकट से संबंध : ख्रुश्चेव ने क्यूबा को वचन दिया था कि अमेरिका से उसकी रक्षा के लिए उसके यहां सोवियत मिसाइलें तैनात की जाएं |
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