BSEB Class 10 Biology Chapter 2 Notes in Hindi | Class 10 Biology Notes in Hindi | Class 10 Biology Chapter 2 Notes Free pdf नियंत्रण एवं समन्वय (Control and Coordination ) Best Notes for 10th Class
यह पोस्ट हम आपके लिए लाए हैं जो बहुत ही उपयोगी है | Class 10 Biology Chapter 2 Notes in Hindi |दोस्तों इस Chapter का नाम नियंत्रण एवं समन्वय (Control and Coordination ) है | इस पोस्ट में “नियंत्रण एवं समन्वय” से जुड़ी हर एक पॉइंट परिभाषित किया गया है जो आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | जो विद्यार्थी किसी कारणवश अपना रेगुलर क्लास नहीं किए हैं उनके लिए यह पोस्ट बहुत ही उपयोगी हैं | इस पोस्ट को आप कम से कम समय में पढ़कर अच्छा नंबर ला सकते हैं और अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकते हैं | इस पोस्ट का pdf को free में Download कर सकते हैं | Class 10 Biology Chapter 2 Notes in Hindi |
Class 10 Biology Chapter 2 Notes in Hindi |
नियंत्रण :-
पर्यावरण की अनुक्रिया के प्रति उत्पन्न गति को विशिष्टीकृत तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित करने की प्रक्रिया नियंत्रण कहलाती है |
समन्वय :-
उद्दीपक के प्रति उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए किसी जीव के विभिन्न अंगों का परस्पर सुसंगठित ढंग से कार्य करना, समन्वय कहलाता है |
उद्दीपक :-
वातावरण में परिवर्तन जिनके प्रति जीव प्रतिक्रिया दिखाते हैं | और सक्रिय रहते हैं , उद्दीपक कहलाते हैं | उद्दीपक के प्रति जीवों की अनुक्रिया प्रायः उनके शरीर की अंग की गति के रूप में होती है |
तंत्रिका तंत्र :-
तंत्रिका उत्तक :-
तंत्रिका तंत्र का निर्माण तंत्रिका उत्तक द्वारा होता है | तथा तंत्रिका उत्तक न्यूरॉन के बने होते हैं।
तंत्रिका कोशिका तथा न्यूरॉन की संरचना :-
- तंत्रिका कोशिकाएं अत्यधिक जटिल तथा सबसे लंबी लगभग 1.5 मीटर से 4 मीटर तक लंबी होती है |
- प्रत्येक तंत्रिका कोशिका भूणीय अवस्था में एक न्यूरोब्लास्ट से बनाती है |
- इसमें 3 भाग होते हैं। (1)कोशिका काय या साइटोन (2)डेड्रोन्स (3) एक्सॉन
ग्राही :-
एक कोशिका ( अथवा कोशिकाओं का समूह है ) जो एक विशेष प्रकार के उद्दीपन अथवा पर्यावरण में एक विशेष प्रकार के परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होता है |
ग्राही के प्रकार :-
- प्रकाश ग्राही :- प्रकाश के प्रति संवेदनशील ( आंखों में )
- ऊष्मा ग्राही :- ऊष्मा तथा ताप के प्रति संवेदनशील ( त्वचा में )
- ध्वनि ग्राही :- ध्वनि के प्रति संवेदनशील ( कर्ण में )
- ध्राण ग्राही :- गंध के प्रति संवेदनशील ( नाक में )
- स्वाद ग्राही :- स्वाद के प्रति संवेदनशील ( जिह्वा में )
तंत्रिका कोशिका के भाग :-
- द्रुमिका :- जहां सूचनाएं उपार्जित की जाती हैं।
- कोशिका काय :- जिससे होकर सूचनाएं विद्युत आवेश की तरह यात्रा करती हैं।
- एक्सॉन :- जहां इस आवेश का परिवर्तन और रासायनिक संकेत में किया जाता है | जिससे यह आगे संचारित हो सके |
दो तंत्रिकाओं के बीच ( जहां वे आपस में जुड़ी है ) सदैव बहुत ही छोटा रिक्त स्थान होता है | जिसे अंतर्गत अंतर्गाथन या सिनेप्स कहते हैं |
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तंत्रिका कोशिका :-
तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को तंत्रिका कोशिका अथवा न्यूरॉन कहते हैं |
तंत्रिका कोशिका के प्रकार :-
- संवेदी तंत्रिका कोशिका :- संवेदनाओं को शरीर के विभिन्न भागों से मस्तिष्क की ओर ले जाती हैं |
- प्रेरक तंत्रिका कोशिका :- यह मस्तिष्क से आदेशों को पेशियों तक ले जाता है |
- बहुध्रुवीय तंत्रिका कोशिका :- यह संवेदनाओं को मस्तिष्क की ओर तथा मस्तिष्क से पेशियों की ओर ले जाती हैं |
तंत्रिका कोशिका के कार्य :-
तंत्रिका कोशिका आपस में मिलकर श्रृंखला बनाती हैं |ये उद्दीपन और प्रेरणाों को विद्युत आवेश के रूप में ध्रुव गति से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती है | जिससे क्रियाएं तुरंत संपन्न हो जाते हैं |
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तंत्रिका आवेश :-
तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा रासायनिक या विद्युत संकेतों का प्रसारण तंत्रिका आवेश कहलाता है |
युग्मानुबंधन :-
वह संपर्क बिंदु जो एक न्यूरॉन के एक्शन की अन्य शाखाओं एवं दूसरे न्यूरॉन के डेड्रीटो के बीच बनता है |
प्रतिवर्ती क्रिया :-
तंत्रिका तंत्र में अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सबसे सरल रूप प्रतिवर्ती क्रिया है | और यह वह क्रिया है जिसे हम यंत्रवत कहते हैं |
गर्म प्लेट छू जाने पर हमारे हाथ का दूर हटना प्रतिवर्ती क्रिया का उदाहरण है।
- वे क्रियाएं हैं जिन्हें हम अपनी इच्छा अनुसार नहीं कर सकते हैं, प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती हैं |
- यह क्रिया मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती हैं |
टहलना :- वे क्रियाएं जिन्हें हम अपने अनुसार कर सकते हैं। ऐक्षिक क्रिया कहलाते हैं |अतः टहलना एक ऐक्षिक क्रिया है |
- यह मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती हैं |
प्रतिवर्ती चाप :-
प्रतिवर्ती क्रिया में अपनाया गया मार्ग प्रतिवर्ती चाप कहलाता है | प्रतिवर्ती चाप अनुक्रिया को शीघ्र होने देता है |
इस प्रकार प्रतिवर्ती चाप के संबंध का स्थान वह बिंदु होना चाहिए जहां आगत तंत्रिका तथा निर्गत तंत्रिका एक दूसरे से मिलते हैं | संपूर्ण शरीर की तंत्रिकाए मेरुरज्जु से मस्तिष्क को जाने वाले रास्ते में एक बंडल में मिलती है | प्रतिवर्ती चाप इसी मेरुरज्जु में बनते हैं |
मानव मस्तिष्क :-
मस्तिष्क अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है |यह अत्यधिक कोमल होता है जो कपाल में सुरक्षित रहता है | यह चारों ओर से रिक्त स्तरीय झिल्ली से घिरा होता है |
मस्तिष्क के भाग :-
(1) अग्र मस्तिष्क :- इसके अंतर्गत घ्राण पिंड प्रमस्तिष्क तथा डायनीश फ्लॉन आते हैं | घ्राण पिंड गंध ज्ञान के ,प्रमस्तिष्क स्मृति, सोचने विचारने, तर्कशक्ति आदि के तथा डायनीश फ्लॉन भूख, प्यास , नींद आप नियंत्रण उपापचय आदि के केंद्र होते हैं |
(2) मध्य मस्तिष्क :- मध्य मस्तिष्क का अधिकांश भाग अनुमस्तिष्क से ढका होता है | यह दृष्टि ज्ञान करता है |
(3) पश्च मस्तिष्क :- इसके अंतर्गत अनु मस्तिष्क तथा मस्तिष्क पुच्छ आता है |
पोन्स :- अनुमस्तिष्क के सामने तथा मस्तिष्क पुच्छ के ऊपर स्थित होता है | यह हृदय स्पंदन तथा श्वसन आदि क्रियाओं को नियंत्रित करता है |
अनुमस्तिष्क :- प्रमस्तिष्क के भाग के नीचे स्थित गोलाकार भाग होता है। यह शरीर का संतुलन बनाने का कार्य करता है।
मस्तिष्क पुन्छ :- मस्तिष्क का पश्च बेलनाकार भाग है। यह शरीर की अनैक्षिक क्रियाओं का नियंत्रण रखता है |
मेरुरज्जु :- मस्तिष्क का पश्च भाग लंबा होकर कपाल के पश्च छोर पर उपस्थित महा रंध्र से निकलकर रीड की हड्डी में फैला रहता है | यही मेरूरज्जू कहलाता है | रीड की हड्डी कशेरुकाओं की बनी होती हैं | इसके मध्य में एक तंत्रिका नाल होती हैं |
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ये उत्तक कैसे रक्षित होते हैं :-
मस्तिष्क एक कोमल अंग है | इस को सुरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है | इसलिए मस्तिष्क अस्थियों के बने बॉक्स में उपस्थित होता है | बॉक्स के अंदर तरल पूरित गुब्बारों में मस्तिष्क होता है | जॉब प्रधात अवशोषक उपलब्ध कराता है | यदि आप अपने हाथ को कमर के मध्य में नीचे ले जाए तो आप एक कठोर ,उभार वाली संरचना का अनुभव करेंगे यह कशेरुक दंड या रीड की हड्डी है जो मेरुरज्जु की रक्षा करती हैं |
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तंत्रिका उत्तक कैसे कार्य करता है :-
तंत्रिका कोशिकाएं के द्रुमीका सिरे ग्राही अंगों से सूचनाएं ग्रहण करके इन्हें मेरुरज्जु में पहुंचाते हैं |यहां पर ये सूचनाएं संसाधित होती हैं | इसके पश्चात इनका रूपांतरण आवेश के रूप में कार्यकारी पेशियों को कर दिया जाता है | जिससे वांछित क्रिया संपन्न होती हैं |
पादपों में समन्वय :-
वृद्धि गति तथा स्फीति गति के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए :-
वृद्धि गति :- यह एक दिशा से हो रहे उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करती हैं। यह कोशिकाओं की असमान वृद्धि के कारण होती हैं | वृद्धि गति अनुत्क्रमणीय होती हैं |
स्फीति गति :- इसमें उद्दीपन की दिशा का कोई प्रभाव नहीं होता है |स्फीति गति कोशिकाओं की स्फीति गति में परिवर्तन आने के कारण होती हैं | स्फीति गति उत्क्रमणीय होती हैं |
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अनुवर्तनी गति तथा अनु चलन गति में अंतर :-
अनुवर्तनी गति :-
- यह उद्दीपन गति की दिशा को निर्धारण करता है |
- उद्दीपन के आधार पर अनुवर्तनी गति अनेक प्रकार की होती हैं। जैसे :- प्रकाश अनुवर्तन, गुरुत्व अनुवर्तन ,रसायन अनुवर्तन आदि |
अनु चलन गति :-
- यह उद्दीपन गति की दिशा का निर्धारण नहीं करता है |
- इसमें संपूर्ण पादप या उसके किसी भाग में स्थान परिवर्तन होता है।अतः यह अनु चलन गति है|
- उद्दीपन के आधार पर अनु चलन गति भी अनेक प्रकार की होती हैं | जैसे:- प्रकाशानुचलन,ताप अनुचलन आदि |
प्रकाश अनुवर्तन और गुरुत्व अनुवर्तन में अंतर :-
प्रकाश अनुवर्तन :- पौधे के भाग ( जैसे तना ,पत्ती ) आदि का प्रकाश की ओर गति करना प्रकाश अनुवर्तन कहलाता है |
- पादपों में प्रकाश अनुवर्तन ऑक्सिन हार्मोन के कारण होता है |
गुरुत्व अनुवर्तन :- पौधे के किसी भाग का पृथ्वी के गुरुत्व की ओर अथवा उसके विपरीत गति को गुरुत्व अनुवर्तन कहते हैं |
जला अनुवर्तन :-
नमी के कारण होने वाली पादप गति को जला अनुवर्तन कहते हैं | इस प्रकार की गति उच्च श्रेणी के पौधों की जड़ों ब्रायोफाइट्स की मूलाभास ,कवकों के हाइफ़ा आदि में देखने को मिलती है |
उदाहरण :- अमीबा जल की ओर बढ़ता है |
रसा अनुवर्तन :- पराग नलिका का बीजाणु की ओर वृद्धि करना |
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पादप हार्मोन :-
पौधों में उत्पन्न विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ जो पौधों की वृद्धि विकास एवं अनु क्रियाओं का नियमन करते हैं। पादप हार्मोन कहलाते है |
पादप हार्मोन के प्रकार :-
- ऑक्सिंस :- कोशिकाओं में विवर्धन करना, कोशिका विभाजन में सहायता करना, फलो पतियों को असमय गिरने से रोकना, कायिक प्रजनन में सहायता करना, खरपतवार नियंत्रण आदि कार्य करना |
- जिबरेलिंस :- तन्नो की लंबाई में वृद्धि करना , बीजों के अंकुरण को बढ़ाना, पुष्पों के खिलने में सहायता करना, कुछ पौधों में अनिषेक फलन उत्पन्न करना आदि कार्य है |
- साइटोकाइनिन :- कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है। जी वार्ता को नष्ट करता है। सुप्ता अवस्था को नष्ट करता है |
- एब्सिसिक अम्ल :- पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करता है। प्रोटीन के संश्लेषण को प्रोत्साहित करता है। सूखे की स्थिति में रंध्रों को बंद करता है। आदि कार्य है |
- इथाइलीन :- फलों को पकाने में सहायक होता है। तन्नो के फूलने में सहायक होता है। मादा पुष्प ओं की संख्या बढ़ाता है आदि कार्य है |
हार्मोन तथा एंजाइम में अंतर :-
हार्मोन :-
- ये कार्बनिक पदार्थ है जो अंतः स्रावी ग्रंथियों से स्रावित होते हैं |
- इनका वहन रुधिर द्वारा होता है |
- ये उपाचयी क्रिया में प्रयुक्त हो जाते हैं |
- ये ग्लाइकोप्रोटीन एस्टेरॉइड या पॉलिपेप्टाइड होते हैं |
एंजाइम :-
- ये भी कार्बनिक पदार्थ है जो बहि स्रावी ग्रंथियों के पाचक रस में पाए जाते हैं |
- इनका वाहन नलिकाओ द्वारा होता है |
- ये उपचयी क्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करते हैं
- ये प्रोटीन होते हैं |
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अंतः स्रावी ग्रंथि तथा बहि स्रावी ग्रंथियों में अंतर :-
अंतः स्रावी ग्रंथि :-
- ये नलिका विहीन ग्रंथियां है |
- इसके स्राव को रुधिर द्वारा गंतव्य तक पहुंचाया जाता है |
- ये विशेष अंगों की उचित वृद्धि और कार्यों के लिए उत्तरदाई हैं |
बहि स्त्रावी ग्रंथि :-
- ये नलिका युक्त ग्रंथि है |
- इनका स्राव नलिकाओं द्वारा शरीर के भीतर तक पहुंचता है |
- ये भोजन एवं बाह्य पदार्थों का कार्य करने में निपुण होते हैं |
मानव शरीर में पाई जाने वाली अंतः स्रावी ग्रंथि एवं उससे स्रावित हार्मोन :-
- पीयूष ग्रंथि :- यह मस्तिष्क में स्थित होती हैं। और यह मटर के दाने के बराबर बड़ी होती हैं। इसे मास्टर ग्रंथि भी कहा जाता है। इससे निम्नलिखित हार्मोन स्रावित होते हैं |
- एंटीड्यूरेटिक हॉरमोन :- इसे ADH कहते हैं। यह वृक्क द्वारा जल के पुनः अवशोषण को नियमित करता है |
- ACFH :- यह कार्टिसोन निर्माण के लिए अधिवृक्क कार्टेस्ट को उत्तेजित करता है |
- FSH :- यह एस्ट्रोजन श्रावण के लिए अंडाशय को उत्तेजित करता है |
- यह थायरोक्सिन के स्त्रावण के लिए थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करता है |
- थायराइड :- यह गले में स्थित होती हैं। इसे थायरोक्सिन हार्मोन स्रावित होता है। थायरोक्सिन उपापचय तथा वृद्धि की दर नियमित करता है। इसकी कमी से गलगंड रोग हो जाता है। अधिकता से भीमकायता रोग उत्पन्न हो जाता है |
- अग्नाशय :- इसकी लैंगरहैंस की दीपिकाओ की बीटा कोशिकाओं से इंसुलिन हार्मोन का श्रावण होता है |
- अधिवृक्क ग्रंथि :- इससे कार्टिसोन का श्रावण होता है। कार्टीशन प्रोटीन को शर्करा में बदलने का कार्य करता है |
- अंडाशय :- यह एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन का श्रवण करता है। यह हार्मोन मादर लक्षणों का विकास करता है |
- वृषण :- यह टेस्टोस्टेरोन का स्त्रवण करता है।यह हार्मोन नर लक्षणों का विकास करता है |
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