Class 10 Biology Chapter 3 Notes in Hindi | जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce) Best Notes in Hindi 

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यह पोस्ट हम आपके लिए लाए हैं | Class 10 Biology Chapter 3 Notes in Hindi | दोस्तों इस Chapter का नाम जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce) है | हमने जीव जनन कैसे करते हैं पाठ का एक Short Notes  बनाया है जो विद्यार्थी दसवीं की परीक्षा के लिए बहुत ही उपयोगी है  खासकर जो विद्यार्थी बिहार बोर्ड से है उसके लिए यह पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है | इस पोस्ट में जीव जनन कैसे करते हैं पाठ के हर एक पॉइंट परिभाषित किया गया है। जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी हैं। इस Chapter का Notes आप pdf free में Download  कर सकते हैं | Class 10 Biology Chapter 3 Notes in Hindi |   

Class 10 Biology Chapter 3 Notes in Hindi |

जनन :- 

किसी जीवधारी द्वारा अपने जैसे प्रतिरूप अथवा संतान का उत्पन्न करना जनन कहलाता है |

जन्म मुख्यतः दो प्रकार का होता है  | 

  1. अलैंगिक जनन
  2. लैंगिक जनन

DNA :- 

DNA का पूरा नाम डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल है | DNA के अणुओं  में अनुवांशिक गुणों का संदेश होता है |  जो जनक से संतति पीढ़ी में आता है | DNA  की प्रतिकृति की बन्ना जनन की मूल घटना है | 

Q. (1) डी.एन.ए की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए क्या आवश्यक है ? 

डी.एन.ए में अनुवांशिक सूचनाएं निहित होती है | डी.एन.ए गुणसूत्रों के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं| अतः डी.एन.ए द्वारा अपने जैसे ही प्रतिरूप बनाने की क्षमता होती हैं | ऐसा डी.एन.ए के प्रतिकृति करण द्वारा होता है | इसके द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी डी.एन.ए की मात्रा संतुलित रहती हैं | 

विभिन्नता का महत्व :- 

जनन क्षमता का उपयोग कर जीव पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं।जनन के दौरान DNA  प्रतिकृति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाते हैं।   

  1. लंबे समय तक प्रजाति की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी
  2. जैव विकास का आधार

एकल जीवों में जनन की विधि :- 

विभिन्न जीवों में जनन की विधि उनके शारीरिक अभिकल्प पर निर्भर करते हैं | 

अलैंगिक जनन :- 

इस प्रकार के जनन में केवल एक ही जीव संतान उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार के जनाने एक कोशिकीय जीवों , कुछ प्राणियों तथा पादपों में पाया जाता है। 

अलैंगिक जनन की अनेक विधियां हैं-  द्वी खंडन, बहू खंडन, बीजाणु जनन,  मुकुलन, कायिक प्रवर्धन, पुनरुदभवन आदि। 

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विखंडन :- 

अलैंगिक जनन की विधि जिसमें एक जीव टुकड़ों में टूटकर नए जियो का निर्माण करता है। विखंडन कहलाते हैं। यह दो प्रकार का होता है।  

  1. द्विखंडन :- कुछ एक कोशिकीय जीवों  जैसे:- अमीबा ,पैरामीशियम, आदि में कोशिका दो भागों में बांट जाती हैं। प्रत्येक भाग में जीव का निर्माण कर लेता है। इस प्रक्रिया को दी विखंडन कहते हैं। 
  2. बहु विखंडन :-  कुछ एक कोशिकीय जीवों , जैसे:-  अमीबा, प्लाज्मोडियम,( मलेरिया परजीवी ) में अत्यधिक ताप तथा सीट से बचने के लिए यह अपने चारों और पुटी बना लेते हैं।अनुकूल परिस्थितियां आने पर पुटी की भीति फट जाती हैं। तथा इन्हें जो बाहर निकल आते हैं | 

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  • पुनरुदभवन या पुनर्जनन :-  हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणी को यदि कोई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्व  जीव का निर्माण कर देता है। यह पुनरुदभवन कहलाता है। 
  • मुकुलन :-  कुछ जीवों जैसे :- यीस्ट , हाइड्रा आदि के शरीर से एक छोटी कालिका निकलती है। इस कालिका में जीव द्रव्य एवं केंद्र का भाग भी होता है। अंततः यह कालिका मातृ जीव से पृथक होकर नए जीव का निर्माण करती हैं। 
  • कायिक प्रवर्धन :- कायिक प्रवर्धन कुछ उच्चतर पौधों में जनन की एक  अलैंगिक विधि है। अनेक पौधों में ऐसी का एक संरचनाएं पाई जाती हैं। जो मात्री पौधे से अलग होकर नए पौधे का निर्माण करती है। उदाहरण के लिए आलू के केंद्र, बायोफिल्म से एवं केलेण्यो पर्ण ,अदरक के प्रकंद ,अरबी में घनकंद  इत्यादि। 
  • बीजाणु जनन :-  अधिकांश कवकों और बीजाणुओ में अलैंगिक जनन की सबसे सामान्य विधि भी बीजाणु निर्माण है।

कुछ एक कोशिकीय जीव जैसे :-  अमीबा आदि में कभी कभी केन्द्रक कला कई स्थानों पर टूट जाती हैं।और इसके केंद्रक में स्थित क्रोमेटिन और टूटकर अपने चारों ओर जीव द्रव्य एकत्र करके जीवाणु बनाते हैं।अनुकूल परिस्थितियों में आवरण के फटने पर वीजा डू बाहर निकल आते हैं। तथा अंकुरण करके नया जीव बनाते हैं। अनेक  पौधों  जैसे:- शैवाल , कवक, लाइकेन , तथा प्रतिकूल दोनों ही मौसमों में होता है।

उत्तक संवर्धन :- 

पौधे के किसी उत्तक या अंग का  संवर्धन कर के नए पौधे का निर्माण करना उत्तक संवर्धन कहलाता है। 

लैंगिक जनन :- 

जनन की वह विधि जिसमें नर तथा मादा युग्मक उत्पन्न करते हैं। जिन के मिलन से नई संतान का निर्माण होता है , लैंगिक जनन कहलाता है। 

लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतान में कुछ विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। किसी जाति समूह में पाई जाने वाली विभिन्नताए उपजाति की अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक होती हैं |

Note :- लैंगिक जनन में भाग लेने वाले दोनों जीव पहले युग्मक का निर्माण करते हैं। जिनमें DNA  की मात्रा पैतृक कोशिकाओं की अपेक्षा आधी हो जाती हैं। जब नर एवं मादा युग्मक आपस में संयोजन करते हैं। तो युग्मनज का निर्माण होता है।  

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पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन :- 

अवृत वीजी  के जननांग पुष्प में पाए जाते हैं। पुष्प के मुख्य चार भाग होते हैं। बाह्यदल, दलपुंज, पुंकेसर, स्त्रीकेसर पुष्प जननांग है। जिनमें जन कोशिकाएं बनती हैं। 

  1. एकलिंगी पुष्प :-  जब पुष्प में केवल एक जननांग पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर ही उपस्थित होता है तो उसे एकलिंगी कहलाता है। जैसे:-  पपीता, तरबूज आदि। 
  2. उभयलिंगी पुष्प :-  जब पुष्प में स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं।  जैसे:-  गुड़हल, सरसों आदि। 

Note :- 

  • पुंकेसर नर जनन अंग है जो पराग कण बनाते हैं।ये राजा पीले रंग की गोल संरचना है। पुष्प को छूने पर हाथों पर पीले रंग का पाउडर से लग जाता है। वे परागकण होते हैं |  
  • स्त्रीकेसर पुष्प के केंद्र में स्थित होते हैं। तथा ये  मादा जननांग कहलाते हैं। स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं। आधारीय फुला हुआ अंडाशय, मध्य में लंबा भाग वर्तिका, तथा सिर्फ भाग वर्तिका ग्रह जो प्रायः चिपचिपा होता है। अंडाशय में बीजांड होते हैं। तथा प्रत्येक बीजांड में एक एंड कोशिका होती हैं। परागकण द्वारा उत्पादित नर युग्मक, अंडाशय कोशिका मादा युग्मक हो जाता है।कोशिकाओं में इस युग में अथवा निर्वाचन से युग्मनज बनता है | 

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पुष्प के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य :- 

  1. बाह्य दलपुंज :- यह पुष्प के सबसे बाहर की ओर स्थित होते हैं। ये  कालिका अवस्था में पुष्पीय अंगों की रक्षा करते हैं। 
  2. दलपुंज :- ये  विभिन्न रंगों के होते हैं। अवर परागण के लिए कीटों को आकर्षित करते हैं। 
  3. पुंकेसर :- ये  पुष्प के नर जननांग है। पुंकेसर के परागकोष से पराग कणों का निर्माण होता है। 
  4. स्त्रीकेसर :- ये पुष्प के मादा जननांग हैं। इनमें अंडपो का निर्माण होता है।

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स्वपरागण तथा पर-परागण में अंतर :-   

स्वपरागणपर-परागण
(1) इसमें एक पुष्प के परागकण उसी पुष्पा उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं। (2) इससे पराग कणों के नष्ट होने की संभावना कम होती है। (3)इससे उत्पन्न बीज कम ओजस्वी होते हैं। (4)इस क्रिया से विभिन्नताओं की संभावना कम होती हैं | (1) एक पुष्प के परागकण उसी जाति के किसी अन्य पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं। (2)इससे पराग कणों के नष्ट होने की संभावना अधिक होती हैं। (3) इससे उत्पन्न बीज अधिक ओजस्वी होते हैं |(4)इस क्रिया से विभिन्नताओं की संभावना बढ़ जाती है |

मानव में लैंगिक जनन :- 

जैसा कि हम जानते हैं कि आयु के साथ-साथ मानव शरीर में कुछ परिवर्तन आते हैं | कक्षा 2 से 10 तक पहुंचते-पहुंचते हमारे लंबाई एवं भार बढ़ जाता है | इस दौरान दूध के दांत गिर जाते हैं और अस्थाई दांत निकल आते हैं | इन सभी परिवर्तनों को एक सामान्य प्रक्रम वृद्धि में समूहबद्ध कर सकते हैं |

नर जनन तंत्र :- 

जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुंचाने वाले अंग संयुक्त रूप से नर जनन तंत्र बनाते हैं।

मानव नर जनन तंत्र के निम्नलिखित अंग है :- 

  1. वृषण
  2. वृषण कोष 
  3. अधिवृषण
  4. शुक्राशय 
  5. शुक्रवाहिनी
  6. शिश्न  
  1. वृषण :-  पुरम्स में 1 जोड़ी वृषण उदर गुहा से बाहर, थैले जैसी रचना वृषण कोष में स्थित होते हैं। प्रत्येक वृषण के अंदर अनेक अत्यधिक पतली तथा कुंडली  नलिकाये होती है। इनमें स्थित शुक्रजनन कोशिकाएं शुक्राणु जनन की क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं।
  2. अधिवृषण :- अधिवृषण वृषणों के ऊपर स्थित अति कुंडलित नलिकाएँ होती है।शुक्राणु वृषण से इन नलिकाओं में आते हैं। 
  3. शुक्रवाहिनी :-  अधिवृषण का अंतिम छोर एक संकरी नली में खुलता है।इस शुक्रवाहिनी कहते हैं। दोनों ओर कि शुक्रवाहिनी उदर गुहा में प्रवेश करके शुक्राशय से मिल जाते हैं। 
  4. शुक्राशय :- यह थैलीनुमा रचना होती है। शुक्रवाहिनी उदर गुहा में पहुंचकर मूत्र नली के साथ लूप बनाती हुई शुक्राणु में खुलती हैं।शुक्राशय में शुक्राणु एकत्रित होते हैं।शुक्राशय में पोषक तरल स्रावित होता है।शुक्राणुओ सहित इस तरल को विर्य कहा जाता है। 
  5. मूत्र मार्ग :- शुक्राशय एक संकरी नली के द्वारा, जिसे स्खलन नलिका कहते हैं।मूत्राशय के संकरे मार्ग में खुलता है। पुरुष में मैथुन क्रिया के लिए मूत्र मार्ग एक मांसल अंग शिश्न में स्थित होता है।बाद में यह एक छिद्र द्वारा बाहर खुलता है। इसे मूत्र जनन छिद्र कहते हैं।
  6.  सहायक ग्रंथियां :-  उपयुक्त अंगों के अतिरिक्त पुरुषों में प्रोटेस्ट , काउपर्स तथा पीनियल ग्रंथिया उपस्थित होती हैं। जो अपने-अपने स्राव वीर्य में स्रावित करती हैं। तथा शुक्राणुओं की सुरक्षा करती हैं।   

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मादा जनन तंत्र :- 

मादा जनन तंत्र में निम्नलिखित अंग होते हैं | 

  1. अंडाशय 
  2. अंडवाहिनी
  3. गर्भाशय
  4. योनि
  5. भग
  6. बर्थोलिन ग्रंथि
  1. अंडाशय :-  स्त्री में 1 जोड़ी अंडा से होते हैं। ये अंडाकार, भूरे रंग की रचनाएं हैं। जो उदर गुहा में, गर्भाशय में दोनों ओर एक-एक करके स्थित होते हैं। अंडाशय में अंड जनन की क्रिया द्वारा अगुंठित अंड का निर्माण होता है।
  2. अंडवाहिनी :-  दोनों अंडाशयों के समीप स्थित झालर दार मुखीका से एक-एक अंडवाहिनी निकलती है।जो मध्य भाग में फैलोपियन नलिका कहलाती हैं। दोनों ओर की नल्लिकाएं गर्भाशय के ऊपरी भाग में खुलती है।
  3. गर्भाशय :-  गर्भाशय एक मांसल रचना है , जिसका ऊपरी भाग चौड़ा तथा निचला भाग संकरा होता है। दोनों ओर की अंडवाहिनी गर्भाशय के चौड़े भाग में ऊपर की ओर खुलती हैं। 
  4. योनि :-  गर्भाशय का निचला भाग एक संकरी एवं लचीली मांसल नलिका में खुलता है। जिसे योनि कहते हैं। मिथुन के समय पुरुष का वीर्य इसी नलिका में स्खलित होता है और गर्भाशय मुखी का से होते हुए शुक्राणु फैलोपियन नलिका में पहुंचता है। 
  5. भग :- योनि बाहर की ओर एक छिद्र द्वारा खुलते हैं। जिसे भग कहते हैं।इसे सुरक्षित रखने के लिए इसके दोनों और दो मांसल ओष्ठ होते हैं। दोनों ओष्ठों को जुड़ने के स्थान पर ऊपर की ओर एक भग शिश्न होता है।
  6. बर्थोलिन ग्रंथियां :- यह एक विशेष प्रकार का तरल पदार्थ स्रावित करती हैं। यह तरल पदार्थ मैथुन को सुगम बनाता है। तथा शुक्राणुओं की जीवाणुओं से रक्षा करता है। 

क्या होता है जब अंड का निषेचन नहीं होता ? 

यदि अणु कोशिका का निषेचन नहीं होता तो यह लगभग 1 दिन तक जीवित रहती हैं। क्योंकि अंडाशय प्रत्येक माह एक अंड का मंचन करता है। अतः निषेचित अंड की पूर्ति हेतु गर्भाशय भी प्रतिमाह तैयारी करता है। अतः इसकी अंत भीति मांसल एवं स्पंजी हो जाती हैं। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है। परंतु निषेचन ना होने की अवस्था में इस परत की आवश्यकता नहीं रहती हैं। अतः यह परत धीरे- धीरे टूट जाती है। इस चक्र में लगभग एक माह का समय लगता है तथा इसे “रजोधर्म” कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती हैं। 

जनन स्वास्थ्य :-

लैंगिक क्रिया द्वारा गर्भधारण की संभावना सदैव बनी रहती हैं। गर्भधारण की अवस्था में स्त्री के शरीर एवं भावनाओं की मांग एवं आपूर्ति बढ़ जाती हैं। और यदि वह गर्भधारण के लिए तैयार नहीं है तो इसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः गर्भ धारण को रोककर स्वास्थ्य को बनाए रखना “जनन स्वास्थ्य” कहलाता है। 

गर्भधारण को रोकने के उपाय :- 

  1. रोधक विधियां :-  इसमें कंडोम तथा डायाफ्राम का प्रयोग किया जाता है। ये  युक्तियां शुक्राणुओं को अंडाणु से मिलने से रोधक का कार्य करती हैं। जिससे निषेचन नहीं होता है। 
  2. रासायनिक विधियां :-  सगर्भता को रोकने के लिए महिलाएं दो प्रकार की गोलियों का उपयोग करती हैं – गोलियां शुक्राणु और अंडाणु को निष्क्रिय कर देती है। 
  3. शल्य विधियां :-  इस विधि में पुरुष नसबंदी या स्त्री नसबंदी कराई जाती  है। 
  4. अंतः गर्भनिरोधक विधियां :-  चिकित्सकों द्वारा copper-t का रोपण गर्भाशय के अंदर करने से गर्भधारण क्रिया नहीं होती हैं। 

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