Class 10 Biology Chapter 4 Notes in Hindi |अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) Best Notes for 10th Class 

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दोस्तों यह पोस्ट हम आपके लिए लाए हैं जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी है | Class 10 Biology Chapter 4 Notes in Hindi |  इस Chapter का नाम अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Heredity and Evolution) है | इस पोस्ट में हमने Class 10 Biology Chapter 4 का एक Short Notes बनाया है जो आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है |  इस पोस्ट में अनुवांशिकता एवं जैव विकास से जुड़ी लगभग सभी पॉइंट्स परिभाषा के द्वारा परिभाषित किया गया है | आप Class 10 Biology Chapter 4 Notes pdf भी Download कर सकते हैं | Class 10 Biology Chapter 4 Notes in Hindi

Class 10 Biology Chapter 4 Notes in Hindi |

अनुवांशिकी :- 

अनुवांशिकता / वंशागति :-  विभिन्न लक्षणों का पूर्व  विश्वसनीयता के साथ वंशा गत होना | 

विभिन्नता / विविधता :-  यह जनन और संतति के लक्षणों की असमानता की अवस्था है |

शारीरिक कोशिका विभिन्नता :-

  •  यह शारीरिक कोशिका में आती है |
  •  यह अगली पीढ़ी में स्थानांतरित नहीं होते हैं |
  •  जैव विकास में सहायक नहीं है |
  •  इन्हें उपार्जित लक्षण भी कहा जाता है |  उदाहरण :- कानों में छेद करना, कुत्तों में पूछ काटना 

जनन कोशिका विभिन्नता :- 

  •  यह जनन कोशिका में आती है |
  •  यह अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं |
  •  जैविक विकास में सहायक है |
  •  इन्हें अनुवांशिक लक्षण भी कहा जाता है | उदाहरण:-  मानव के बालों का रंग, मानव शरीर की लंबाई | 

जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन :- 

  • अलैंगिक जनन
  •  लैंगिक जनन 
अलैंगिक जननलैंगिक जाना ना
विभिन्नताएँ कम होगी D.N.A प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण उत्पन्न होते हैं | विविधता अपेक्षाकृत अधिक होगी क्राश संक्रमण के द्वारा गुणसूत्र क्रोमोसोम के विश्व नियोजन द्वारा 

विभिन्नता के लाभ :- 

  1.  प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्नता जीवों के विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं | उदाहरण :- उष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती हैं | 
  2. पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्तन का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनता है |

अनुवांशिकता :- 

जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें एक जीव के लक्षणों को उसकी संतति में वंशागत होने तथा उसमें उत्पन्न विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।

जनन जीवों से संतति में लक्षणों के संचरण को “अनुवांशिकता” कहते हैं। 

ग्रेगर जॉन मेंडल ने मटर के पौधों पर अपने प्रयोग किए। तथा वंशागति के नियम प्रतिपादित किए।  मेंडल के कार्यों के आधार पर उन्हें आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है। 

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मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन :- 

  1. मटर 1 वर्षीय पादप है अर्थात इस का जीवन चक्र 1 वर्षो में पूरा हो जाता हूं। इसलिए कम समय में मटर की अनेक पीढ़ियों का अध्ययन किया जाना संभव था। 
  2. मोटर का फूल द्विलिंगी है। इसमें स्वपरागण के द्वारा समयुग्मजी ( शुद्ध)  पादप का वंश क्रम सरलता से प्राप्त किया जा सकता है | 
  3. इसके फूलों में विपुंसन विधि द्वारा कृत्रिम पर परागण आसानी से किया जा सकता है।
  4. इसके पौधे में विभिन्न विपरीत ( विपर्यासी ) लक्षणों के जुड़े पाए जाते हैं। 

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मेंडल के वंशागति के नियम :- 

  1. प्रभाविता का नियम :-  इस नियम के अनुसार जब परस्पर विरोधी लक्षणों वाले एक ही जाति के दो पौधों या जनकों के बीच संकरण कराया जाता है। तो उनकी प्रथम पीढ़ी की संतानों में विरोधी लक्षणों में से प्रभावी लक्षण तो प्रकट हो जाता है। तथा प्रभावी लक्षण दबा रहता है। 
  2. पृथक्करण का नियम :-  इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत लक्षणों वाले शुद्ध नस्ल की एक ही जाति के पौधों या जनकों के बीच संकरण कराया जाता है।तो उनकी प्रथम पीढ़ी (f1) के पौधे शंकरण होते हैं |और प्रभावी लक्षण को प्रकट करते हैं | उनकी दूसरी पीढ़ी f2 के पौधों की एक निश्चित संख्या 1:2:1  फिर शुद्ध हो जाती है अर्थात यह दूसरी पीढ़ी में पृथक हो जाते है। 
  3. स्वतंत्र अपत्युहन का नियम :-  इस नियम के अनुसार जब 2 जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले एक ही जाति के 2 पौधों के बीच पर परागण द्वारा एक ही साथ संकरण कराया जाता है तो उसमें विपरीत लक्षणों का जोड़ा स्वतंत्रता पूर्वक अपना प्रदर्शन करता है। 

मेंडल का योगदान :- 

मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए। मेंडल को आनुवंशिकी के जनक के नाम से जाना जाता है। मेंडल ने मटर के पौधे के विपर्यासी ( 7 विकल्पों )लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं। 

              लक्षण              प्रभावी          अप्रभावी
बीज का आकारगोलखरीदार
बीज का रंगपीलाहरा
फूल का रंगबैंगनी सफेद
फली का आकारफूली हुईसिकुड़ी हुई
फली का रंगहरापीला
पुष्प की स्थितिकक्षीयअग्रस्त
पादप की ऊंचाईलंबाबोना

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मनुष्य में लिंग निर्धारण :- 

मनुष्य में लिंग निर्धारण लिंग गुणसूत्र द्वारा होता है | मनुष्य में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं | जिनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्र ऑटोसोम कहलाते हैं। जबकि 23 वां जोड़ी लिंग गुणसूत्र कहलाता है। पुरुषों में 23 वें जोड़े के गुणसूत्र में 1 गुणसूत्र X तथा दूसरा गुणसूत्र Y होता है | स्त्रियों में 23 वें जोड़े के दोनों गुणसूत्र XX  होते हैं | X  गुणसूत्र मादा संतान के लक्षण धारण करते हैं।  जबकि Y गुणसूत्र नर संतान के लक्षण धारण करते हैं। अन्य सभी ऑटोसोम दैहिक लक्षणों को धारण करते हैं। 

Note :-  युग्मक बनते समय पुरुष के आधे शुक्राणुओं में X गुणसूत्र तथा आधे शुक्राणु में Y गुणसूत्र होते हैं। मादा में केवल एक ही युग में ( अंडाणु) का निर्माण होता है | जिसमें X गुणसूत्र स्थित होता है | जब पुरुष का X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु से निषेचन करता है तो पैदा होने वाली संतान लड़की होती है | यदि पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु से निषेचन करता है तो उत्पन्न होने वाली संतान लड़का होता है | 

उपार्जित लक्षण :- 

वे लक्षण जिसे कोई जो अपने जीवन काल में अर्जित करता है। उसे उपार्जित लक्षण कहते हैं।

उदाहरण :-  अल्प पोषित, भृंग  के भार में कमी। 

उपार्जित लक्षणों के गुण :- 

  1. ये  लक्षण जीवों द्वारा अपने जीवन काल में प्राप्त किए जाते हैं। 
  2. ये लक्षण जैव विकास में सहायक नहीं है।

अनुवांशिक लक्षण :- 

वे  लक्षण जिसे कोई जीव अपने जनक से प्राप्त करता है। उसे अनुवांशिक लक्षण कहते हैं।    

 उदाहरण :-  मानव के आंखों व बालों के रंग

अनुवांशिक लक्षणों के गुण :- 

  1. ये लक्षण जीवों में वंशानुगत होते हैं। 
  2. ये लक्षण जैव विकास में सहायक होते हैं। 

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जाति उद्भव :- 

पूर्व स्पीशीज से एक नई स्पीशीज का बनना जाति उद्भव कहलाता है।

नई स्पीशीज के लिए वर्तमान स्पीशीज के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित बने रहना है। इन सदस्यों को नए पर्यावरण में जीवित रहने के लिए कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है। 

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जाति उद्भव का कारण :- 

  • अनुवांशिक विचलन : – किसी एक समष्टि की उत्तरोत्तर पीढ़ियों में सापेक्ष जींस की बारंबारता में अचानक परिवर्तन का उत्पन्न होना आनुवंशिक विचलन कहलाता है। 
  • भौगोलिक पृथक्करण :-  किसी जनसंख्या के बीच जिंस प्रवाह को भौगोलिक आकृतियों जैसे पर्वत, नदियां, समुद्र इत्यादि रोकती है। जिसे एक ही समष्टि के जीव पृथक हो जाते हैं। इसके कारण इसका प्राकृतिक वरण भी विलग हो जाता है। इसे ही भौगोलिक पृथक्करण कहते हैं। 
  • प्राकृतिक वरण :-  चयन की वह प्रक्रिया जिसमें जीव अपने पर्यावरण के प्रति बेहतर अनुकूलित होते हैं। और अपने उत्तरजीविता को बनाए रखते हुए अधिक संताने उत्पन्न करता है। 

आनुवंशिक विचलन का कारण :- 

  • D.N.A में परिवर्तन 
  • गुणसूत्रों में परिवर्तन

विकास एवं वर्गीकरण :- 

जीवधारी के भ्रूणीय परिवर्तन के समय उसके विकास क्रम की पुनरावृत्ति होती हैं। अतः इसे पुनरावृति का सिद्धांत को आते हैं। इस सिद्धांत का प्रतिपादन “ अर्नेस्ट हैकल” ने किया। 

इसके अनुसार जीवधारी व्यक्ति वृत्त में पूर्वजों के विकास में इतिहास को दोहराया है। उदाहरण के लिए किसी स्तनधारी भ्रूण के परिवर्तन के समय भ्रूणावस्था पहले मछली से, फिर उभयचर से तथा उसके बाद सरीसृप से मिलते हैं।  

समजात अंग :- 

ऐसे अंग जो उत्पत्ति एवं मूल रचना में समान होते हैं। तथा जिनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। 

उदाहरण :-  घोड़े के अग्रपाद , चमगादड़, एवं पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ आदि। 

समरूप अंग :- 

ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति तथा मूल रचना भिन्न-भिन्न होती हैं। किन्तु कार्य समान होते हैं समवृत्ति अंग कहलाते है |

उदाहरण :-  तितली के पंख एवं चमगादड़ के पंख आदि | 

जीवाश्म :- 

प्राचीन काल के जीवों के अवशेष, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर पाए जाते थे। किंतु अब जीवित नहीं है, जीवाश्म कहलाते हैं। 

ये अवशेष प्राचीन समय में मृत जीवों के संपूर्ण, अपूर्ण, अंग या अन्य भाग के अवशेष या उन अंगों के ठोस मिट्टी , सैल तथा चट्टानों पर चिन्ह बने होते हैं।

फॉसिल डेटिंग विधि से जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समस्थानिकों के अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय निर्धारण किया जा सकता है। 

विकास के चरण :- 

विकास क्रमिक रूप से अनेक पीढ़ियों से हुआ। 

  1. आंख का विकास :- जटिल अंगों का विकास D.N.A में मात्र एक परिवर्तन द्वारा संभव नहीं है | ये क्रमिक रूप से अनेक वीडियो में होता है।
    • प्लेनेरिया में अति सरल आंख होती हैं। 
    • कीटों में जटिल आंख होती हैं | 
    • मानव में द्विनेत्री आंख होती हैं।

2. पंखों का विकास :-  ठंडे मौसम में उस मारो धान के लिए विकसित हुए कालांतर में उड़ने के लिए भी उपयोगी हो  गए। 

मानव विकास :- 

मानव विकास के अध्ययन में मुख्य साधन उत्खनन, समय निर्धारण,D.N.A अनुक्रम का निर्धारण, जीवाश्म अध्ययन, मानव प्राचीनतम  सदस्य अफ्रीका मूल्य में खोजा गया। 

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