Rail engine manufacturer in India : भारत एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का चौथा रेल नेटवर्क है| भारत में रोजाना 13000 पैसेंजर ट्रेन दौड़ती है जिसमें ढाई करोड़ यात्री रोजाना सफर करते हैं | लेकिन इतनी सारी ट्रेन भारत लाता कहां से हैं| एक ट्रेन को बनाने में कोचेज, पहिए, इंजन तथा बैटरी जैसे ना जाने कितनी चीजों की जरूरत पड़ती है| और इन में कितना खर्च आता है| इसके अलावा रेलवे के बारे में ढेर सारा रोचक बातें बताएंगे तो आप बने रहिए इस पोस्ट के अंत तक | Rail engine manufacturer in India
Rail engine manufacturer in India
भारत का कुल नेटवर्क कितना है?
भारत का कुल रेलवे नेटवर्क 115000 किलोमीटर का है | यह नेटवर्क इतना बड़ा है कि इससे पूरे धरती को 2.5 बार लपेटा जा सकता है | आज भारतीय रेलवे लोगों को रोजगार देने वाली सबसे बड़ी कंपनी है| 13 लाख से अधिक लोग रेलवे में काम कर रहे हैं | और नो आफ एम्पलाइज के मामले में इंडियन रेलवे आज भी वर्ल्ड की कंपनियों में भी बेशुमार है |
भारत में पहली ट्रेन सन 1953 में मुंबई से थाणे तक चलाई गई थी | भारत की पहली पैसेंजर ट्रेन में 14 डिब्बे थी | और 400 यात्रियों ने सफर किया था| उस ट्रेन में 3 इंजन लगे हुए थे और 3 इंजन का नाम सिंध, सुल्तान और शाहिद रखा गया था| भारतीय रेलवे बोर्ड की स्थापना सन 1950 में हुई थी और 1951 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था | भारत की सभी ट्रेनें 1 दिन में जितनी दूरी तय करती हैं वो धरती से चांद तक की दूरी का 8 गुना है | पहले के समय में भारतीय रेल स्टीम इंजन के मदद से चलाई जाती थी लेकिन आज सभी इंजन इलेक्ट्रिक या डीजल से चलाए जाते हैं | इन दोनों की संख्या 50 50% है | एक ट्रेन के सभी पार्ट्स भारत के अलग-अलग जगह पर बनाए जाते हैं |कहीं पर इनके पहिया बनाए जाते हैं किसी जगह पर बॉडी तो कहीं पर इनके इंजन बनाए जाते हैं |और इन सभी को इकट्ठा किया जाता है | ट्रेन के पहिए और बाहरी बॉडी Stainless स्टील से बनाए जाते हैं और इनका इंजन बनाने में भी stainless-steel का इस्तेमाल किया जाता है | वही अंदर का हिस्सा बनाने में एलुमिनियम का इस्तेमाल किया जाता है|
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भारत में अधिकतर रेलवे wdp4 इंजन का इस्तेमाल किया जाता है और सबसे पॉपुलर इंजन wag-9 माना जाता है | एक डीजल इंजन में 16 सिलेंडर लगे होते हैं जो 4500 HP के ताकत जनरेट करते हैं | प्रत्येक सिलेंडर 10941 सीसी का होता है और कुल मिलाकर एक ट्रेन में 1.75 लाख सीसी की क्षमता रखती हैं | डीजल इंजन 1 किलोमीटर चलने के लिए 15 से 25 लीटर ईंधन की खपत करता है जो ट्रेन में लगी बोगियों पर कम ज्यादा हो सकती हैं | एक इलेक्ट्रिक इंजन का कीमत 18 करोड़ की होती है और वही डीजल इंजन की कीमत 13 करोड़ के आसपास होती हैं | इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव चलाने के लिए भारी बिजली की जरूरत पड़ती हैं | और हर साल रेलवे 400 करोड़ रुपये बिजली के तौर पर भुगतान करता है |
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नागपुर मंडल के ट्रेक्स के पास एक खास तरह का टेक्नोलॉजी इस्तेमाल किया गया है |जिससे वहां से गुजरने वाली सभी ट्रेन बिजली उत्पादन करने में सहायक हो यानी एक ट्रेन एक समय में बिजली इस्तेमाल भी करें और बिजली का उत्पादन भी करें | अगर भारत की अन्य जगहों पर इस तरह का टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाए तो भारतीय रेलवे का कोई करोड़ों का मुनाफा होगा | पाली के समय में भारतीय रेलवे की सभी सामान विदेशों से आयात करती थी |सन 1921 में जमशेदपुर में रेलवे क्रॉसिंग बनाने वाली पहली कंपनी पैरानी सुलला लोकोमोटिव के नाम से कंपनी की शुरुआत की गई | लेकिन 1924 में है यह कंपनी बंद हो गई | लेकिन आज भारतीय रेलवे पूरी तरह से स्वदेशी हैं और ट्रेन से लेकर पटरियों के निर्माण तक भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुका है |
भारत में ट्रेन इंजन, लोकोमोटिव, डिब्बा और पहिए कहां बनाए जाते हैं ?
1. चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स
यह कंपनी पश्चिम बंगाल के आसनसोल में स्थित है| ये दुनिया में सबसे अधिक इंजन बनाने वाली कंपनियों में से एक है| यहां पर wag-9, wap7, wap5, wag 7, wap4 जैसे कोई पावरफुल इंजन का निर्माण किया जाता है|
2. Bharat Heavy Electricals limited
भेल को भारत सरकार द्वारा 1964 में स्थापित किया गया था | और इसका हेड क्वार्टर नई दिल्ली में स्थित है | इस कंपनी द्वारा आज तक हजारों की संख्या में रेलवे लोकोमोटिव इंजन की सप्लाई की जा चुकी है जिनमें इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव DE ,इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट शामिल है | और साथ ही ट्रैक मेंटेनर मशीनों की आपूर्ति भी इस मशीनों द्वारा की जाती हैं |
3. डीजल लोकोमोटिव वर्क्स
आज भारत में सबसे ज्यादा डीजल लोकोमोटिव का निर्माण बनारसी स्थित डीजल लोकोमोटिव वर्क्स में ही किया जा रहा है | इस कंपनी ने सन 1961 में डीजल लोकोमोटिव इंजन बनाने की शुरुआत की थी जो आज तक जारी है साथ ही यह कंपनी लोकोमोटिव स्पेयर पार्ट्स का निर्माण भी करते हैं | इस कंपनी ने wdp4, wdp4d, wdg4, wdg5 जैसे डीजल लोकोमोटिव रेलवे को दिए |
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4. डीजल लोकोमोटिगेशन वर्क
भारतीय रेलवे को मजबूती प्रदान करने और अधिक डीजल लोकोमोटिव के निर्माण के लिए 1981 में पंजाब के पटियाला में स्थापित किया गया था| इस कंपनी का काम लोकोमोटिव निर्माण के साथ-साथ उनकी मेंटेनेंस करना और इंजन असेंबल करना है |
5. गोल्डन रॉक रेलवे वर्कशॉप
यह कंपनी तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थित है और यह असल में एक रिपेयरिंग वर्कशॉप है | खास तौर पर मेकेनिकल डिपार्टमेंट का काम संभालते हैं |
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6. इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्ट्री
साल 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ था | इसके तहत फ्रांस के कंपनी ALSTOM के सहयोग से बिहार के मधेपुरा इलाका में एक कंपनी शुरू की जाएगी जो 11 साल में 800 लोकोमोटिव इंजन बनाएगी| और वे सभी इंजन 12000 HP के होंगे | इस कंपनी को बनाने में 6 बिलियन का खर्च आएगा यह प्रोजेक्ट रेलवे के लिए पहला fd1 प्रोजेक्ट है|
7. रेल व्हील फैक्ट्री
बेंगलुरु में स्थित रेल पहिया कारखाना भारतीय रेलवे पहिया बनाने का काम करती हैं| हर साल रेलवे को ढाई लाख पहिए का जरूरत पड़ती है जिसमें से 180000 से अधिक पर यह इसी कंपनी से बनते हैं इस कंपनी की शुरुआत 1984 में की गई थी और उससे पहले भारतीय रेलवे विदेशों से ही पहिए का आयात करती थी| पहियों को आपस में मिलाने के लिए एक्सेल का निर्माण भी यहां पर किया जाता है|
8. रेल कोच फैक्ट्री
इंडियन रेलवे कोचेस की बात करें तो कोई जगह पर अलग-अलग कोचेस बनाए जाते हैं |जिनमें सबसे पहला नाम पंजाब के कपूरथला फैक्ट्री का आता है| इस फैक्ट्री में हर साल 1500 से 1600 कोचेस का निर्माण किया जाता है | और आज तक 30,000 से अधिक कोच इस कारखाने में बनाया जा चुका है | साल 2013-14 में यहां का रिकॉर्ड 1700 कोचेस का निर्माण किया गया था|आज इस कंपनी में राजधानी से लेकर शताब्दी तक की सभी रेल के कोचेस बनाए जा रहे हैं | इसके अलावा उत्तर प्रदेश के रायबरेली में मॉडर्न कोच फैक्ट्री है जहां हजारों कोच का उत्पादन हर साल किया जा रहा है | और चेन्नई में स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री भी अब तक है 50,000 से अधिक कोच का निर्माण कर चुकी है इस कंपनी की स्थापना 1955 में हुई थी और कुछ असेंबल का काम भी यहां किया जाता है यहां पर 1st ,2nd जैसे कोच का निर्माण किया जाता है |
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