Raja Harishchandra itihas me itna mahan kyo the? राजा हरिश्चंद्र इतिहास में प्रसिद्ध क्यों है?

Raja Harishchandra itihas me itna mahan kyo the : दोस्तों आप सभी जानते हैं कि दुनिया में हर कोई जन्म लेता है अपने जीवन काल में कर्म करता हैं और एक समय आता है  जब  उनकी मृत्यु को प्राप्त होते हैं उसकी मृत्यु के बाद उसको जाने वाले चाहने वाले उसको याद करते हैं लेकिन एक समय आता है कि धीरे-धीरे उसकी यादें धुंधली पड़ जाते हैं और उसको भुला दिया जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके मृत्यु के हजारों साल, कई पीढ़ियां बीत  जाने के बाद उनको भुलाया नहीं  जाता उनके कर्मों और उनके चरित्र के वजह से  ऐसे ही व्यक्तियों में एक महान व्यक्ति हुए हैं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जी |  इनके बारे में बहुत कहावते सुने होंगे कई कहानियां सुनेंगे और आज भी जब किसी महान सत्यवादी व्यक्ति के बारे में बात की जाती हैं तो सबसे पहले राजा हरिश्चंद्र जी का नाम आता है | जो अपनी सत्यवादिता, अपनी दानवीरता, और अपनी वचन बधता के लिए दुनिया भर में मशहूर है |  तो चलिए दोस्तों जानते हैं राजा हरिश्चंद्र इतिहास में प्रसिद्ध  क्यों हैं |  तो आप से निवेदन है कि यह पोस्ट अंत तक जरूर  पढ़िएगा | 

Raja Harishchandra itihas me itna mahan kyo the

राजा हरिश्चंद्र का जन्म आज से लगभग 8000 वर्ष पूर्व ( 6000 ईसा पूर्व)  हिंदू पंचांग के पौष मास   शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सूर्यवंश में हुआ था | राजा हरिश्चंद्र के पिता का नाम सूर्यवंशी राजा सत्यव्रत था  | राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी (इक्ष्वाकुवंशी, अर्कवंशी, रघुवंशी) राजा थे।राजा हरिश्चंद्र के कुलगुरू महर्षि वशिष्ठ थे |  राजा हरिश्चंद्र ने राजसूय यज्ञ करके चारों दिशाओं के राजाओं को रणभूमि में  परास्त कर चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी |भारत में चक्रवर्ती सम्राट उस राजा को कहा जाता है जो पूरे भारतवर्ष पर जिसका साम्राज्य का आविष्कार रहा हो |राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी, निष्ठावान,  एवं शक्तिशाली सम्राट थे, उनकी  प्रजा सुख समृद्धि व शांति से जीवन व्यतीत करती थी | त्रेता युग के दौरान राजा हरिश्चंद्र का जन्म हुआ था |                 

                      राजा हरिश्चंद्र के पत्नी तारामती थी | विवाह के उपरांत बहुत समय तक सम्राट व  साम्राजी को किसी संतान की प्राप्ति नहीं हुई |  सम्राट हरिश्चंद्र की यज्ञ से प्रसन्न होकर  जल देव वरुण जी ने सम्राट को संतान प्राप्ति का  आशीष दिया | वरदान के कुछ समय पश्चात सम्राट को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ जिनका नाम रोहित रखा गया | वह गरीबों को बहुत ज्यादा से ज्यादा धन दान में दे देते थे सोना चांदी हीरा मोती इत्यादि | राजा हरिश्चंद्र बहुत बड़े दानवीर थे

                           राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय हैं और इसके लिए इन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े। जब राजा ने वरुण के आने पर भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी न की तो उन्होंने हरिश्चंद्र को जलोदर रोग होने का श्राप  दे दिया | रोग से छुटकारा पाने और वरुणदेव को फिर प्रसन्न करने के लिए राजा वशिष्ठ जी के पास पहुंचे। इधर इंद्र ने रोहिताश्व को वन में भगा दिया।

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                            राजा ने वशिष्ठ जी की सहमति से अजीगर्त नामक एक दरिद्र ब्राह्मण के बालक शुन:शेप को खरीदकर यज्ञ की तैयारी की। परंतु बलि देने के समय शमिता ने कहा कि मैं पशु की बलि देता हूँ, मनुष्य की नहीं। जब शमिता चला गया तो विश्वामित्र ने आकर शुन:शेप को एक मंत्र बताया और उसे जपने के लिए कहा। इस मंत्र का जप करने  पर वरुणदेव स्वयं प्रकट हुए और बोले – हरिश्चंद्र , तुम्हारा यज्ञ पूरा हो गया। इस ब्राह्मण कुमार को छोड़ दो। तुम्हें मैं जलोदर से भी मुक्त करता हूँ। 

                           एक दिन राजा ने एक सपना देखा कि वह अपना सारा राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया है | अगले दिन जब विश्वामित्र महल में आए तो राजा ने उनको सारी बात बताई और उन्हें अपना सारा राजपाट सौंप दिया |फिर  विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से 500 मुद्राएं और दान में मांगे | विश्वामित्र ने राजा को याद दिलाया कि वे राजपाट के साथ राज्य के कोष भी दान कर चुके हैं |  और दान में दी हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं किया जा सकता है |  500  मुद्राएं जमा करने के लिए वह अपने बीवी और बच्चे को बेच दिए लेकिन फिर भी 500 मुद्राएं जामा ना हो पाए तो अंत में राजा हरिश्चंद्र ने खुद को बेच  डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दी | 

 राजा हरिश्चंद्र  खुद को जहां बेचा था वह शमशान का चांडाल था और जो लोग शव लेकर श्मशान में आते थे उन लोगों से यह कर(मुद्रा) लेकर अंतिम संस्कार करने देते थे |  1 दिन की बात है रोहित को एक सांप ने काट लिया और उनका मृत्यु हो गया तो पत्नी तारा अपने पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंची अंतिम संस्कार करने के लिए वहां राजा ने रानी से भी कर  मांगा तो रानी ने अपना साड़ी फाड़कर कर चुका ना चाहा ,  आसमान की बिजली के चमकने से उस स्त्री  चेहरा का नजर आया | वह स्त्री राजा हरिश्चंद्र की पत्नी थी और उनके हाथ में जो बच्चा था वह उनके बेटे रोहित का शव था | बेटे का शव देख राजा हरिश्चंद्र बेहद भावुक हो उठे |उनकी आंखों में आंसू भरे थे लेकिन फिर भी वह अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए आतुर थे | वह सत्य के लिए अपने राजपाट को दान दे दिए , अपने पत्नी और बच्चे के प्रति मोह माया त्याग दिए ,  सत्य के लिए अपने पत्नी और बेटे को  बेच दिए  और अंत में खुद को भी बेच  दिए | उसी समय आकाशवाणी हुई , ईश्वर स्वयं प्रकट हुए | तुम्हारी कर्तब्यनिष्ठा महान है , तुम इतिहास में अमर रहोगे | 

राजा हरिश्चंद्र ने ईश्वर से कहा “अगर सच में  मेरी कर्तव्य और सत्य के प्रति समर्पण सही है तो कृपया इस स्त्री के पुत्र को जीवनदान दीजिए “ | इतने में ही रोहित जीवित हो उठा | विश्वामित्र ने राजा  हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें लौटा दिया |  

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