Biology Class 9 Chapter 2 Notes in Hindi | ऊतक (Tissues) | Best Notes For 9th Class |

BSEB Biology Class 9 Chapter 2 Notes in Hindi | ऊतक (Tissues) | Best Notes For 9th Class | 

दोस्तों यह पोस्ट आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | Biology Class 9 Chapter 2 Notes in Hindi | इस Chapter का नाम “ऊतक” (Tissues) है | दोस्तों हमने इस Chapter का एक छोटा सा नोट तैयार किया है जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी है | जिसे आप कम से कम समय में अच्छे से तैयारी कर सकते हैं और प्रथम श्रेणी से पास हो सकते हैं | Biology Class 9 Chapter 2 Notes in Hindi |

Biology Class 9 Chapter 2 Notes in Hindi | ऊतक (Tissues) | Best Notes For 9th Class | 

ऊतक :- 

एक कोशिकाओं का समूह जो उद्भव वह कार्य की दृष्टि समान होता है हम उसे उत्तक कहते हैं | एक कोशिकीय जीवों में सामान्यतः एक ही कोशिका के अंदर सभी महत्वपूर्ण क्रियाएं जैसे:- पाचन, श्वसन व उत्सर्जन क्रियाए होती है | 

           बहुकोशिकीय जीवों में सभी महत्वपूर्ण कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूह द्वारा की जाती है |  कोशिकाओं का विशेष समूह जो संरचनात्मक कार्यात्मक व उत्पत्ति में समान होते हैं ,उत्तक कहलाते हैं| 

  • पादप उत्तक
  •  जंतु उत्तक

पादप उत्तक :- 

कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसमें समान अथवा असमान कोशिकाएं उत्पत्ति, कार्य, संरचना में समान होती है, पादप उत्तक कहलाती हैं | 

पादप उत्तक दो प्रकार के होते हैं | 

  • विभज्योतकीय  उत्तक
  • स्थाई उत्तक 

विभज्योतकीय उत्तक :- 

विभाजितकी उत्तक वृद्धि करते हुए भागों में पाए जाते हैं जैसे तने और जड़े के शीर्ष और कैंबियम | 

विभज्योतिकी उत्तक की विशेषताएं :- 

  • सैलूलोज की बनी कोशिका भित्ति | 
  • कोशिकाओं के बीच में स्थान अनुपस्थित, सटकर जुड़ी कोशिकाएं | 
  • कोशिकाएं गोल, अंडाकार या आयताकार | 
  • कोशिका द्रव्य सघन काफी मात्रा में | 

विभेदीकरण :- 

एक सरल कोशिका एक विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थाई रूप और आकार प्राप्त करती हैं उसे विभेदीकरण कहते हैं | 

स्थाई उत्तक :- 

ये उन विभज्योतकी उत्तक से उत्पन्न होते हैं जो कि लगातार विभाजित होकर विभाजन की क्षमता खो देते हैं | 

   इनका आकार, आकृति व मोटाई निश्चित होती है | ये  जीवित या मृत दोनों हो सकते हैं | स्थाई उत्तक  की कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में रिक्तियां होती हैं | 

स्थाई उत्तक 3 प्रकार के होते हैं :- 

  • सरल स्थाई उत्तक 
  • जटिल स्थाई उत्तक
  • विशिष्ट स्थाई उत्तक

 सरल स्थाई उत्तक :- 

एक समान स्थाई कोशिकाएं जिनकी कोशिका भित्तिया अनिश्चित मोटाई की होती है, वे साथ में मिलकर सरल स्थाई ऊतकों की रचना करती हैं | ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं | 

  • मृदु तक या पैरेंकाइमा
  • स्थूलकोण  ऊतक
  • दृढ़ उत्तक 

मृत्यु तक या पैरेंकाइमा :- ये  उत्तक पतली कोशिका भित्ति वाली कोशिकाओं के समूह होते हैं जो पौधे के कोमल भागों में पाए जाते हैं। इन उत्तक में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं | 

  1. इस उत्तक की कोशिकाएं गोलाकार, अंडाकार अथवा अनियमित आकार की होती है | 
  2.  इस उत्तर की कोशिकाओं के बीच अंतर कोशिकाएं स्थान पाए जाते हैं | 
  3. इनकी कोशिका भित्तिया पतली होती है और सेलुलोज की बनी होती है |
  4. इनके जीव द्रव्य में रिक्तिकाएं पाई जाती है |  

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स्थूलकोण :- 

जब मृदूतक की कोशिकाओं के कोने पर सैलूलोज जमा हो जाता है तब वे स्थूलकाय , भद्दी और लचीली हो जाती हैं |ऐसी कोशिकाओं के समूह स्थूलकोण उत्तक कहलाता है |  

  1. इस  उत्तक की कोशिकाएं जीवित होते हैं | 
  2. इस  उत्तक की कोशिकाओं की भित्तियां मोटी तथा भद्दी होती हैं | 
  3. कोशिकाओं के कोनो के सेलुलोज से भर जाने के कारण अंतर कोशिकीय स्थान बहुत कम हो जाते हैं अथवा समाप्त हो जाते हैं | 
  4. इस उत्तक की कोशिकाओं के जीवद्रव्य में रिक्तिकाहे पाई जाती है | 

दृढ़ ऊतक :- 

ये  उत्तक लंबी-लंबी कोशिकाओं के मिलने से बनते हैं जिनके किनारे सँकरे होते हैं | ये  उत्तक कठोर परंतु मजबूत होते हैं |  इनमें निम्नांकित विशेषताएं पाई जाती है | 

  1. इस उत्तर की कोशिकाएं प्रौढ़ होने पर मर जाती है | 
  2. इस उत्तक की कोशिकाओं की भितिया बहुत मोटी और मजबूत होती है क्योंकि उन पर लिगनेन जमा रहता है | 
  3. ये उत्तक पौधों को यांत्रिक मजबूती और लचीलापन प्रदान करते हैं | 

जटिल स्थाई उत्तक :- 

वे उत्तक जो जीवित और मृत कोशिकाओं को मिलाकर कई प्रकार की कोशिकाओं के मिलने से बने होते हैं , जटिल और स्थाई उत्तक कहलाते हैं | ये दो प्रकार के होते हैं | 

  • जाइलम
  • फ्लोएम 

जाइलम :- 

यह उत्तक पादपों में मृदा से जल व खनिज का संवहन करता है | 

फ्लोएम :- 

यह उत्तक पादपों में निर्मित भोज्य पदार्थों का संवहन करता है | 

विशिष्ट स्थाई उत्तक :- 

पौधों में कुछ ऐसे उत्तक पाए जाते हैं जो विशेष रासायनिक पदार्थों का स्रोत करते हैं ऐसे उत्तकों को विशिष्ट स्थाई उत्तक कहा जाता है | यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं (1) लेडीस फेरस तथा (2) ग्रंथिल| 

जंतु उत्तक :- 

समान संरचना, कार्य एवं भ्रूणीय उत्पत्ति वाली कोशिकाओं का समूह जो एकत्रित होकर विशिष्ट कार्य को संचालित करता है, जंतु उत्तक कहलाता है |  

जंतु उत्तक में चार प्रकार के उत्तक पाए जाते हैं :- 

  • एपिथीलियम ऊतक
  • संयोजी उत्तक
  • पेशीय उत्तक
  • तंत्रिका उत्तक

एपिथीलियम ऊतक :- 

जो शरीर की गुहिकाओं के आवरण,त्वचा, मुंह की बाहरी परत में पाए जाते हैं | 

    यह शरीर व शरीर की गुहीकाओ का आवरण बनाता है | मुंह के बाह्य परत , पाचन तंत्र, फेफड़े, त्वचा की संरचना, अवशोषण करने वाले भाग व स्राव करने वाले भाग, वृक्कीय नली व लार नली की ग्रंथि | 

यह पांच प्रकार की होती है | 

साधारण शल्की एपिथीलियम :- पतली एक कोशिकीय स्तर,ये  सामान्यतः रक्त वाहिकाएं व फेफड़ों की कुपिकाओं को बनाते हैं | पारगम्य झिल्ली द्वारा पदार्थों का संवहन | 

घनाकार एपिथीलियम :-  घनाकार एपिथीलियम वृक की सतह पर ब्वृकिय नली व लार ग्रंथि की नली के अस्तर का निर्माण | 

स्तंभाकार एपिथीलियम :- ये  कोशिकाएं स्तंभाकार होती हैं यह आंतों की सतह पर पाए जाते हैं |  

ग्रंथिल एपिथीलियम :- ये एपिथीलियम कोशिकाएं आंतों की सतह, त्वचा में आदि में पाई जाती है |  व पाचन एंजाइम व रसों का स्राव करती है | 

पक्ष्माभी एपिथीलियम :- कुछ अंगों की कोशिकाओं की सतह पर पक्ष्माभ पाए जाते हैं |  जैसे श्वसन नली , गर्भ नली , गुर्दे की नालीका |  यह उत्तक पदार्थों के चलने में सहायक होते हैं | 

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संयोजी उत्तक :- 

इस उत्तक की कोशिकाएं शरीर के विभिन्न अंगों को आपस में जोड़ने या आधार देने का कार्य करती है जो कि मैट्रिक्स में ढीले रूप में पाई जाती है | 

संयोजी उत्तक के कार्य :- 

  • ये अंगों और शारीरिक रचनाओं को जोड़ते हैं | 
  • ये अंगों और अन्य ऊतकों के चारों ओर रक्षात्मक आवरण बनाते हैं | 
  • ये उत्तक सूक्ष्म जीवों द्वारा स्रावित आविश से मुकाबला करते हैं | 
  • ये  घायल और बेकार ऊतकों को हटाते हैं | 

संयोजी उत्तक चार प्रकार के होते हैं | 

  • वास्तविक संयोजी उत्तक
  • कंकाल संयोजी उत्तक
  • स्नायु और कण्डरा
  • तरल संयोजी उत्तक 

अस्थि :- 

इसके अंतःकोसीय  स्थान में Ca व फास्फोरस के लवण भरे होते हैं | जो अस्थि को कठोरता प्रदान करते हैं अस्थियां शरीर को निश्चित आकार प्रदान करती है |  इसका मैट्रिक्स ठोस होता है | 

उपास्थि :- 

इसमें अंतः कोशिकीय स्थान पर प्रोटीन व शर्करा होती हैं जिससे यह लचीला व मुलायम होता है  यह अस्थियों  के जोड़ों को चिकना बनाता है | यह नाक,कान, कंठ , नाखून आदि में पाए जाते हैं |  इसकी कोशिकाएं कोंड्रोसाइट कहलाते हैं | 

एरिओलर / उत्तक :- 

यह उत्तक त्वचा और मांसपेशियों के बीच,रक्त नलिका के चारों ओर तथा नसों और अस्थिमज़ा में पाया जाता है | 

कार्य :- 

यह अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है | आंतरिक अंगों को सहारा प्रदान करता है और उसको की मरम्मत में सहायता करता है | 

वसामय उत्तक :- 

वसा का संग्रह करने वाला वसामय उत्तक त्वचा के नीचे आंतरिक अंगों के बीच पाया जाता है |वसा संग्रहित होने के कारण यह ऊष्मीय कुचालक का कार्य भी करता है | इस उत्तक की कोशिकाएं वशा  की गोलीकाओ से भरी होती है | 

पेशीय उत्तक :- 

शरीर के मांसपेशियां पेशीय उत्तक की बनी होती है | धागे की तरह की संरचना के कारण ये पेशीय तंतु कहलाते हैं | मांसपेशियों का संकुचन व फैलाव इन्हीं के द्वारा किया जाता है | मांसपेशियों में विशेष प्रकार का प्रोटीन एक्टिव एवं मायोसिन होता है जिन्हें संकुचन प्रोटीन को आते हैं | 

पेशीय उत्तक तीन प्रकार के होते हैं | 

  • रेखित  पेशी 
  • अरेखित पेशी
  • हृदय पेशी 

तंत्रिका उत्तक :- 

मस्तिष्क, मेरुरज्जु एवं तंत्रिकाए मिलकर तंत्रिका तंत्र बनाती है | तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं न्यूरॉन कहलाती है | तंत्रिका कोशिका में केंद्रक व कोशिका द्रव्य होता है | तंत्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं | 

  • साइटोन :- कोशिका जैसी संरचना जिसमें केंद्रक व कोशिका द्रव्य पाया जाता है यह संवेग  को विद्युतीय आवेश में बदलती है | 
  • एक्सोन :- पतले धागे जैसी रचनाएं जो एक सिरे पर साइटोन व दूसरे सिरे पर संवेगी अंग से जुड़ी रहती हैं | 
  • डेंड्रॉन :- 

कंकाल उत्तक :- 

ये सुरक्षात्मक और सहारा देने वाले उत्तक है जो शरीर का अंतः कंकाल और ढांचे का निर्माण करते हैं |  

कंकाल के कार्य :- 

  • ये उत्तक शरीर को निश्चित आकार प्रदान करते हैं |
  • ये  नाजुक आंतरिक अंगों जैसे:-  ह्रदय, मस्तिष्क, और फेफड़ों की सुरक्षा करते हैं |
  • यह चलने फिरने और शरीर के अन्य गतियों में सहायक होते हैं | 

रक्त :- 

रक्त एक तरल संयोजी उत्तक है जो प्लाजा और रक्त कोशिकाओं के मिलने से बना होता है | 

लसीका :- 

यह एक तरल पदार्थ है जो शरीर के कोशिकाओं के चारों तरफ पाया जाता है | ये  रक्त  से मिलता जुलता है परंतु यह रंगहीन होता है इसमें प्रोटीन, ग्लूकोज, जाल, अमीनो अम्ल, लिंफोसाइट, और फगोसाइट्स कोशिकाएं पाई जाती हैं | 

लसीका के कार्य :- 

  • यह कोशिकाओं के बीच पदार्थों के परिवहन में सहायक होता है | 
  • इसमें पाए जाने वाले लिंफोसाइट्स और फगोसाइट्स शरीर के जीवाणुओं के संक्रमण से रक्षा करती है | 

रक्त और लसीका में अंतर :- 

                    रक्त                    लसीका
(1)रक्त का रंग लाल होता है | (2) रक्त में लाल रक्त कण पाए जाते हैं | (3) रक्त में अधिक मात्रा में प्रोटीन पाई जाती हैं | (4) रक्त में फाइब्रिनोजेन की मात्रा अधिक होती है | (5) रक्त में  बच्चे हुए भोजन और उत्सर्जित पदार्थ कम होते हैं | (1)लसीका सामान्यतः रंगीन होता है | (2)लसीका में लाल रक्त कण नहीं पाए जाते हैं | (3)लसीका में प्रोटीन की मात्रा कम होती है | (4)लसीका में  फाइब्रिनोजेन की मात्रा कम होती है | (5)लसीका में भोजन और उत्सर्जित पदार्थ की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है | 

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