BSEB Class 10 Physics Chapter 1 Notes in Hindi | प्रकाश : परावर्तन एवं अपवर्तन (Light : Reflection and Refraction) | Best Notes in Hindi |
दोस्तों यह पोस्ट हम आपके लिए लाए हैं | Class 10 Physics Chapter 1 Notes in Hindi | इस Chapter का नाम “प्रकाश : परावर्तन एवं अपवर्तन” (Light : Reflection and Refraction) है |हमने परावर्तन एवं अपवर्तन Chapter का एक छोटा सा नोट्स बनाया है जो आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | दोस्तों इस पोस्ट में परावर्तन एवं अपवर्तन से जुड़े हर एक एक पॉइंट को परिभाषा के द्वारा परिभाषित किया गया है | जिससे कम से कम समय में अच्छे से तैयारी किया जा सकता है | Class 10 Physics Chapter 1 Notes in Hindi |
Class 10 Physics Chapter 1 Notes in Hindi |
प्रकाश :-
प्रकाश वह बाह्य भौतिक कारण है जिससे हमें किसी वस्तु को देखने की अनुभूति प्राप्त होती है |
प्रकाश के गुण :-
- प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती हैं |
- प्रकाश अपारदर्शी वस्तुओं की शिक्षण छाया बनाता है |
- प्रकाश की चाल निर्वात में सबसे अधिक है : 3*108m/s
प्रकाश का परावर्तन :-
जब कोई प्रकाश किरण किसी परावर्तक पृष्ठ से टकराती हैं | और टकराने के पश्चात उसी माध्यम में वापस लौट आती है | तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं |
परावर्तन दो प्रकार के होते हैं :-
(1)नियमित परावर्तन :- जब प्रकाश किरणे किसी चिकनी सतह पर आपतित होती हैं | तो परावर्तित किरणे उसी माध्यम में निश्चित दिशाओं में लौट आती हैं |
(2) विसरित परावर्तन :- इस परिवर्तन में आपतित किरणें जब खुरदरी सतह पर स्थित होती है तो परावर्तित किरण अनिश्चित दिशाओं में लौट जाती हैं |
- प्रकाश का वेग =3*108m/s
- सर्वाधिक वेग= निर्वात में
- न्यूनतम वेग = कांच में
परावर्तन के नियम :-
- आपतित किरण , परावर्तित किरण एवं अभिलंब एक ही पल में होते हैं |
- परावर्तित किरण की आवृत्ति एवं चल अपरिवर्तित रहते हैं |
समतल दर्पण :-
दो दर्पण एकदम समतल या सपाट हो उसे समतल दर्पण कहते हैं |
समतल दर्पण से बने प्रतिबिंब :-
- समतल दर्पण से बना प्रतिबिंब सदैव आभासी एवं सीधा होता है | प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है |
- प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है | जितनी दूरी पर दर्पण के सामने बिंब रखा होता है |
- प्रतिबिंब में पार्श्व परिवर्तन होता है |
- प्रतिबिंब तथा बिंब दोनों एक ही चाल में गति करते हैं |
समतल दर्पण की फोकस दूरी = अनंतसमतल दर्पण का आवर्धन = +1 |
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पार्श्व परिवर्तन या उत्क्रमण :-
जब हम अपना प्रतिबिंब समतल दर्पण में देखते हैं | तो हमारा दाया हाथ प्रतिबिंब में बाया हाथ दिखाई देता है | तथा हमारा बाया हाथ प्रतिबिंब में दाया हाथ दिखाई देता है | इस प्रकार वस्तु के प्रतिबिंब में पार्षद बदल जाते हैं | इस घटना को पार्श्व परिवर्तन या उत्क्रमण कहते हैं |
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गोलीय दर्पण :-
ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलिए हो उसे गोलीय दर्पण कहते हैं | ये दो प्रकार के होते हैं |
अवतल दर्पण :-
वह गोलीय दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर विक्रित हो,अवतल दर्पण कहलाता है |
उत्तल दर्पण :-
वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर निकला हुआ होता है उसे उत्तल दर्पण कहते हैं|
दर्पण से संबंधित कुछ परिभाषाएं :-
- दर्पण का ध्रुवा :- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को दर्पण का ध्रुव कहते हैं |
- मुख्य अक्ष :- गोलीय दर्पण के ध्रुव P व वक्रता केन्द्र C को मिलाने वाली रेखा, दर्पण की मुख्य अक्ष कहलाती हैं |
- वक्रता त्रिज्या :- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग होता है | उसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है | इसे ‘R’ से दर्शाते हैं |
- वक्रता केंद्र :- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है | इस गोले का केंद्र गोलीय दर्पण की वक्रता केंद्र कहलाता है | इसे ‘C’ से दर्शाते हैं |
- मुख्य फोकस :- मुख्य अक्ष के समांतर चलने वाली प्रकाश की किरणें,दर्पण से परावर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के जिस बिंदु पर मिलती हैं | या मिलती हुई प्रतीत होती हैं | उस बिंदु को दर्पण का मुख्य फोकस कहते हैं | इसे ‘F’ से प्रदर्शित किया जाता है |
- फोकस दूरी :- गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच की दूरी को उस दर्पण की फोकस दूरी कहते हैं | यदि दर्पण की वक्रता त्रिज्या R है तो दर्पण की फोकस दूरी F= R2 होगी |
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प्रतिबिंब बनने के लिए गोलीय दर्पण का नियम :-
- दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश किरण, परावर्तन के पश्चात अवतल दर्पण के मुख्य फोकस से गुजरेगी तथा उत्तल दर्पण के मुख्य फोकस से अपसरित होती प्रतीत होगी |
- अवतल दर्पण के मुख्य फोकस से गुजरने वाली किरण अथवा उत्तल दर्पण के मुख्य फोकस की ओर निर्देशित होने वाली किरण परावर्तन के उपरांत मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती हैं।
- अवतल दर्पण की वक्रता केंद्र से गुजरने वाली किरण अथवा उत्तल दर्पण की वक्रता केंद्र की ओर निर्देशित होने वाली किरण, परावर्तन के बाद उसी पथ के अनुदिश वापस परिवर्तित हो जाती हैं |
अवतल दर्पण से प्रतिबिंब बनाने की स्थितियां :-
(1)वस्तु की स्थिति- अनंत पर :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = फोकस F पर
- प्रतिबिंब का आकार = अत्यधिक छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक एवं उल्टा
(2) वस्तु की स्थिति- C से परे :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = F तथा C के बीच
- प्रतिबिंब का आकार = छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= वास्तविक तथा उल्टा
(3) वस्तु-C पर :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= C पर
- प्रतिबिंब का आकार = समान
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक एवं उल्टा
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(4) वस्तु C तथा F के बीच :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = C से परे
- प्रतिबिंब का आकार = बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक एवं उल्टा
(5) वस्तु-F पर :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= अनंत पर
- प्रतिबिंब का आकार= अत्यधिक बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= वास्तविक का उल्टा
(6) वस्तु-P तथा F के बीच :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= दर्पण के पीछे
- प्रतिबिंब का आकार= बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = आभासी एवं सीधा
उत्तल दर्पण से प्रतिबिंब बनने की स्थितियां :-
(1) जब वस्तु अनंत पर :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= फोकस F पर
- प्रतिबिंब का साइज= अत्यधिक छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= आभासी तथा सीधा
(2) जब वस्तु अनंत तथा दर्पण के ध्रुव P के बीच :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= P तथा F के बीच दर्पण के पीछे
- प्रतिबिंब का आकार= छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = आभासी एवं सीधा
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दर्पणों का उपयोग :-
अवतल दर्पण के उपयोग :-
- अवतल दर्पण का उपयोग सामान्यतः टॉर्च, सर्च लाइट तथा वाहनों के अग्रदीपों में प्रकाश का शक्तिशाली समांतर किरण पुंज प्राप्त करने में किया जाता है |
- दांतों के डॉक्टर अवतल दर्पण का उपयोग मरीजों के दांतों का बड़ा प्रतिबिंब देखने में करते हैं|
- सौर भाटियों में सूर्य के प्रकाश को केंद्रित करने के लिए बड़े अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है |
उत्तल दर्पण का उपयोग :-
- उत्तल दर्पण का उपयोग सामान्यतः वाहनों के पश्च दृश्य दर्पण के रूप में किया जाता है |
- ये वाहन के पार्श्व में लगे होते हैं तथा इनमें ड्राइवर अपने पीछे से आने वाले वाहनों को देख सकते हैं | जिससे वे सुरक्षित रूप से वाहन चला सके |
- उत्तल दर्पण सदैव सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं | यद्यपि यह छोटा होता है |
- उत्तल दर्पणों का दृष्टि क्षेत्र भी बहुत अधिक होता है | क्योंकि यह बाहर की ओर वकृत होते हैं|
गोलीय दर्पणों द्वारा चिन्ह परिपाटी :-
गोलीय दर्पणों से परावर्तन के लिए नई कार्तीय चिन्ह परिपाटी का प्रयोग किया जाता है | इसमें दर्पण के ध्रुव P को मूल बिंदु मानते हैं | दर्पण के मुख्य अक्ष को निर्देशांक पद्धति का X अक्ष (XX1) लिया जाता है, यह परिपाटी निम्न प्रकार है |
- वस्तु को दर्पण के बाई ओर रखा जाता है |
- मुख्य अक्ष के समांतर सभी दूरियां दर्पण के ध्रुव से मापी जाती हैं |
- मूल बिंदु के दाएं ओर मापी गई सभी दूरियां धनात्मक तथा मूल बिंदु के बाएं और मापी गई सभी दूरियां ऋणात्मक मानी जाती है।
- मुख्य अक्ष के लंबवत तथा ऊपर की ओर मापी जाने वाली दूरियां धनात्मक तथा मुख्य अक्ष के लंबवत तथा नीचे की ओर माफी जाने वाले दूरियां ऋणात्मक मानी जाती हैं |
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दर्पण सूत्र :-
दर्पण में इसके ध्रुव से वस्तु तक की दूरी U दर्पण के ध्रुव से प्रतिबिंब तक की दूरी V तथा फोकस दूरी F से प्रदर्शित की जाती है |
1F=1V+1U |
आवर्धन :-
गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन से यह ज्ञात होता है की कोई प्रतिबिंब, बिंदकी अपेक्षा कितने गुना आवर्धित है |
यदि बिम्ब (वस्तु) की ऊंचाई h तथा प्रतिबिंब की ऊंचाई h1 हो तब गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन
M= प्रतिबिंब की ऊंचाई (h1) बिम्ब की ऊँचाई(h)
आवर्धन (m) = -v u
- आवर्धन के मान में ऋणात्मक चिन्ह का अर्थ है | की प्रतिबिंब “ वास्तविक व उल्टा” है |
- आवर्धन के मान में धनात्मक चीन का अर्थ यह है की प्रतिबिंब “ आभासी एवं सीधा” है |
आवर्धन +1.5 का क्या अभिप्राय है ? + चिन्ह यह दर्शाता है कि प्रतिबिंब आभासी तथा सीधा बनेगा | जो वस्तु के आकार का 1.5 गुना बनेगा | |
प्रकाश का अपवर्तन :-
जब कोई प्रकाश किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में में प्रवेश करती है | तो उसका पथ विचलित हो जाता है | इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं |
Note :- यदि प्रकाश किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो वह आपतित किरण के सापेक्ष अभिलंब की ओर मुड़ जाती हैं |
यदि प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो अभिलंब से दूर हट जाती हैं |
कांच के आयताकार स्लैब से अपवर्तन :-
जब आपतित किरण AB सतह से टकराती है तो किरण कांच के गुटके में प्रवेश करते समय अभिलंब की ओर झुक जाती हैं | जब अपवर्तन पृष्ठ CD से होता है | तो प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हैं | इसलिए प्रकाश किरण अभिलंब से दूर हट जाती हैं |
अपवर्तन के नियम :-
- आपतित किरण, अप और अतीत किरण एवं अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं |
- आपतन कोण की जया sin i व अपवर्तन कोण की जया sin r का अनुपात स्थिर होता है | इसे स्नेल का अपवर्तन नियम भी कहते हैं | यदि आपतन कोण i हो और अपवर्तन कोण r हो तब
sin isin r=स्थिरांक
इस स्थिरांक के मान को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं |
अपवर्तनांक :-
किन्हीं दो माध्यमों के लिए होने वाले दिशा परिवर्तन के विस्तार को अपवर्तनांक के रूप में व्यक्त किया जाता है |एक प्रकाश किरण माध्यम 1 से माध्यम 2 में प्रवेश कर रही हैं | माध्यम 1 में प्रवेश की चाल V1 तथा माध्यम 2 में प्रकाश की चाल V2 हैं |
तब माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक, माध्यम 1 में प्रकाश की चाल तथा माध्यम 2 में प्रकाश की चाल के अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है | इसे n21 से प्रदर्शित किया जाता है |
n21 = माध्यम 1 में प्रकाश की चाल माध्यम 2 में प्रकाश की चाल= V1V2
इसी प्रकार –
n12 = माध्यम 2 में प्रकाश की चाल माध्यम 1 में प्रकाश की चाल =cv
Note :- यदि माध्यम 1 निर्वात या वायु है |तब माध्यम 2 का अपवर्तनांक निर्वात के सापेक्ष माना जाता है | यह माध्यम का ‘ निरपेक्ष अपवर्तनांक’ कहलाता है | यदि वायु में प्रकाश की चाल C तथा माध्यम में प्रकाश की चाल V हो तब माध्यम का अपवर्तनांक nm होगा |
उदाहरण के लिए जल का अपवर्तनांक 1.33 है| इसका अर्थ है कि वायु में प्रकाश का वेग तथा जल में प्रकाश के वेग का अनुपात 1.33 है |
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लेंस :-
दो पृष्ठों से गिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम,जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलिए हैं ,लेंस कहलाते हैं | अर्थात लेंस में कम से कम 1 पृष्ठ गोलीय होता है |
लेंस दो प्रकार के होते हैं :-
उत्तल लेंस :-
जिस लेंस में बाहर की ओर दो गोलीय पृष्ठ होते हैं | उसे उत्तल लेंस या अभिसारी लेंस कहते हैं | और यह लेंस किनारों पर पतला और बीच में मोटा होता है |
अवतल लेंस :-
जिस लेंस में अंदर की ओर वक्रित दो गोलीय पृष्ठ होते हैं | उसे अवतल लेंस कहते हैं | और इस लेंस को अपसारी लेंस भी कहा जाता है | यह लेंस किनारों पर मोटे तथा बीच में पतले होते हैं |
लेंस से संबंधित कुछ परिभाषाएं :-
- वक्रता केंद्र:- किसी लेंस में चाहे वह उत्तल हो अथवा अवतल दो गोलीय पृष्ठ होते हैं | इनमें से प्रत्येक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है | इन गोलो के केंद्र लेंस के वक्रता केंद्र कहलाते हैं | इन्हें C1 व C2 से प्रदर्शित किया जाता है |
- मुख्य अक्ष :- किसी लेंस के दोनों वक्रता केंद्रों से गुजरने वाली एक काल्पनिक सीधी रेखा को लेंस का मुख्य अक्ष कहते हैं |
- प्रकाशिक केंद्र :- लेंस का केंद्रीय बिंदु लेंस का प्रकाशिक केंद्र कॉल आता है | इस o से निरूपित करते हैं |
- द्वारक:- लेंस के प्रकाशिक केंद्र से गुजरने वाले प्रकाश किरण बिना किसी विचलन के निर्गत होती हैं | गोलीय लेंस की वृत्ताकार रूपरेखा का प्रभावी व्यास द्वारक कहलाती है |
- उत्तल लेंस का मुख्य फोकस :- उत्तल लेंस पर मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरणें उससे प्रतीत होकर एक बिंदु पर अभीसारीत हो जाती है मुख्य अक्ष पर यह बिंदु उत्तल लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है |
- अवतल लेंस का मुख्य फोकस :- अवतल लेंस और मुख्य अक्ष के समांतर अतीत होने वाली किरणें अपवर्तन के पश्चात एक बिंदु से अपसारित होती प्रतीत होती हैं | मुख्य अक्ष पर स्थित यह बिंदु अवतल लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है |
- फोकस दूरी :- किसी लेंस के मुख्य फोकस की प्रकाशिक केंद्र से दूरी फोकस दूरी कहलाती है | फोकस दूरी को F से दर्शाया जाता है |
उत्तल लेंस से प्रतिबिम्ब बनने की स्थितियां :-
(1)जब वस्तु अनंत पर हो :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= फोकस F2 पर
- प्रतिबिंब का आकार = अत्यधिक छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= वास्तविक एवं उल्टा
(2)जब वस्तु 2F1से परे हो :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = F2 कथा 2F2 के बीच
- प्रतिबिंब का आकार= छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक तथा उल्टा
(3) जब वस्तु 2F1 पर हो :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = 2F2 पर
- प्रतिबिंब का आकार = समान आकार
- प्रतिबिंब की प्रकृति= वास्तविक एवं उल्टा
(4) जब वस्तु F1 तथा 2F1 के बीच में हो तब :-
- प्रतिबिंब की स्थिति =2F2 से परे
- प्रतिबिंब का आकार= बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक तथा उल्टा
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(5) जब वस्तु फोकस F1 पर हो :-
- प्रतिबिंब की स्थिति= अनंत पर
- प्रतिबिंब का आकार = अत्यधिक बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = वास्तविक तथा उल्टा
(6) फोकस F1 तथा प्रकाशिक केंद्र 0 के बीच :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = जिस ओर बिंब है लेंस भी उसी ओर
- प्रतिबिंब का आकार = बड़ा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= अभीसारी तथा सीधा
अवतल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब बनने की स्थितियां :-
(1)अनंत पर :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = फोकस F1 पर
- प्रतिबिंब का आकार = अत्यधिक छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति= आभासी तथा सीधा
(2) अनंत तथा लेंस के प्रकाशिक केंद्र 0 के बीच :-
- प्रतिबिंब की स्थिति = फोकस F1 तथा प्रकाशिक केंद्र 0 के बीच
- प्रतिबिंब का आकार = छोटा
- प्रतिबिंब की प्रकृति = आभासी तथा सीधा
गोलीय लेंसों के लिए चिन्ह परिपाटी :-
- सभी दूरियां लेंसों के प्रकाशिक केंद्र से मापी जाती है |
- उत्तल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक तथा अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक ली जाती है|
- प्रकाशिक केंद्र के बाएं ओर दूरियां ऋणात्मक तथा दाईं ओर धनात्मक मापी जाती हैं |
लेंस सूत्र :-
यदि लेंस के प्रकाशिक केंद्र से बिंब दूरी U प्रतिबिंब दूरी V तथा फोकस दूरी F हो तो
1F=1u-1V
आवर्धन :-
किसी लेंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन, प्रतिबिंब की ऊंचाई एवं वस्तु की ऊंचाई के अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है |
M=प्रतिबिंब की ऊंचाई बिंब की ऊंचाई=h1h
लेंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन, बिंब दूरी U तथा प्रतिबिंब दूरी V हो तो आवर्धन (M) =h1h=vu
लेंस की क्षमता :-
किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरित या अपसरित करने की मात्रा को लेंस की क्षमता कहते हैं | इसे ‘P’ से दर्शाते हैं |
P =1F |
लेंस की क्षमता का मात्रक ‘ डाई आफ्टर’ होता है | जब की फोकस दूरी को मीटर में व्यक्त करते हैं |
1 डाई आफ्टर :- 1 डाई आफ्टर उस लेंस की छमता है | जिस की फोकस दूरी 1 मीटर है |
उत्तल लेंस की छमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती हैं |
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