Top 5 Bharat ke rochak or rahasyamayi itihas | Top 5 भारत के रोचक और रहस्यमय इतिहास | 

Top 5 Bharat ke rochak or rahasyamayi itihas : भारत का इतिहास और संस्कृति काफी रोचक और रहस्य से पूर्ण है। इसी में जानेंगे कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने किस धर्म को अपनाया था | भारत माता अपने वीरो योद्धाओं से भी अभिमानपूर्ण, भारत पर बहुत से राजा, महाराजा ने राज किया है और इसके विकास के लिए कई प्रभावशाली कदम भी उठाये है। क्या आप जानते है | दोस्तों क्या आपको पता था छठी सदी में हिंदुस्तान में सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था  जिसमें शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेशों से लोग आया करते थे |  और भारत के वह कौन से प्रधानमंत्री थे जिन से थाने में रिश्वत लिया गया था |  तो दोस्तों चलिए हम भारत के कुछ इतिहास के बारे में जानेंगे जो काफी अद्भुत है  तो दोस्तों आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढियेगा  

Top 5 Bharat ke rochak or rahasyamayi itihas

1. राखी का त्यौहार कब से शुरू हुआ  सर्वप्रथम राखी किसने और कब बांधी ही थी 

राखी का बहन और भाई का  सबसे प्रसिद्ध और पवित्र रिश्ता माना जाता है | इस दिन बहन ने अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर भगवान से उनकी सफलता का कामना करते हैं | बहनें अपने भाई के कलाई में राखी बांधकर भगवान से  उनकी तरक्की का प्रार्थना करते हैं | राखी के दिन भाई ने अपने कलाई में राखी बंधवा कर बहनों को उपहार देते हैं | कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधा जाता है |  घर में मेहमान को आना जाना रहता है |  रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम के रिश्ता को मजबूत बनाता  है | 

     रक्षाबंधन को लेकर हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई प्रकार के पौराणिक कथाओं के बारे में बताया गया है कि रक्षाबंधन की शुरुआत सतयुग में हुआ था | 

युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था।

2. कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने किस धर्म को अपना लिया था 

शोक के अभिलेख, बौद्ध परंपराओं के विपरीत, उसके बौद्ध होने का संबंध कलिंग युद्ध से जोड़ते हैं। अशोक अपने 13वें शिलालेख में ( जिसमें कलिंग युद्ध की घटनाओं का वर्णन है) यह घोषणा करता है, कि इसके बाद देवताओं का प्रिय धम्म की परीक्षा ,अभिलाषा एवं शिक्षा करता है। कलिंग युद्ध के अभिषेक के 8वें. वर्ष की घटना है। कलिंग युद्ध में छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं को मौत के घाट  उतार दिया गया था | अशोक ने सोचा कि इसमें महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों का क्या कसूर था कि उन्हें काट दिया गया |  यही देखकर अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया |  और वह शस्त्र छोड़ने का प्रण ले लिया | अशोक निग्रोथ से बहुत प्रभावित था जो अशोक का भतीजा था  | एक दिन अशोक ने  निग्रोथ   से पूछा तुम इतने शांत कैसे रहते हो तो  निग्रोथ ने कहा हम बौद्ध धर्म अपनाते हैं |  बौद्ध धर्म में अस्तांगिक मार्ग पर चलिए, मारपीट और युद्ध से दूर रहिए| अशोक ने पूछा कि  यह बौद्ध धर्म क्या है तो  निग्रोथ ने अपने गुरु के पास ले जाते हैं |  अशोक को बौद्ध धर्म की प्रेरणा निग्रोथ से मिला था |  लेकिन बौद्ध धर्म की शिक्षा उपगुप्त से मिला  और अशोक में बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन अशोक ने दूसरे धर्मों को भी इज्जत करता था और कहा कि मेरा धर्म बौद्ध धर्म है लेकिन मेरी जानता का धर्म बौद्ध धर्म नहीं है जनता स्वतंत्र हैं अपने धर्म को मानने के लिए |  अशोक ने अपने बेटा महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था | जिससे  प्रभावित होकर श्रीलंका के सिंघली वंश के शासक ने  बौद्ध धर्म को अपना लिया और आज भी श्रीलंका में बौद्ध धर्म की अधिकता है |  अशोक ने बौद्ध धर्म को बहुत शालीनता से फैलाया कोई जोर जबरदस्ती के नहीं फैलाया था | अशोक जगह-जगह पर संदेश देता था कि लोगों को अत्याचार ना किया जाए और अशोक ने जब वह धर्म अपनाया तो या प्रेरणा लिया कि वह आज के बाद हथियार कभी नहीं उठाएगा  लेकिन अशोक का डर बहुत था लोगों में, बौद्ध धर्म के प्रचार के समय तीसरी बौद्ध संगीति की स्थापना पाटलिपुत्र में हुई | 

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3. सिकंदर की तीन इच्छाएं वह कौन-कौन सी थी  | 

सिकंदर विश्व विजेता की चाहत रखता था जिस कारण वह अपने आसपास के सभी  विद्रोही को खत्म करना शुरू कर दिया था |  सिकंदर के बारे में बताया जाता है कि वह बेहद क्रूर और खतरनाक शासक था | सिकंदर को जीत का घमंड होने लगा था यानी कि कभी नहीं मरेगा  ज्यादा जीने की चाह ने सिकंदर को भारत की ओर आने पर मजबूर कर दिया | सिकंदर को लगता था कि भारत में कहीं  पर अमृत मिलता है जिसे वह पीकर अमर हो जाए और विश्व विजेता का सपना पूरा हो जाए |  मृत्यु को हराने का दावा करने वाला सिकंदर मरने से पहले  मृत्यु से खुद डर गया था | सिकंदर को पता चल गया था कि हार जीत, धन दौलत अहंकार सब एक  झूठ हैं  जब की मृत्यु ही सच है | इसमें सिकंदर ने दुनिया को संदेश देने के उद्देश्य से अपनी इच्छा जाहिर की थी 

 पहला:- जिन चिकित्सकों ने मेरा इलाज किया वह सारे मेरे जनाजे को कंधा देंगे ताकि लोगों को पता चले कि जो इलाज करने वाले चिकित्सक भी मृत्यु को हरा नहीं सकते | 

 दूसरा:- जनाजे की राह में वो सारी दौलत बिछा दी जाए जो मैंने जिंदगी भर इकट्ठा की थी ताकि सभी को पता चले कि मृत्यु आती है तो धन दौलत किसी काम के नहीं होते  हैं| 

 तीसरा :-  मेरा जनाजा जब निकाला जाए तो मेरे दोनों हथेली को बाहर की ओर लटकाया जाए ताकि लोगों को पता चले कि इंसान धरती पर खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है | 

तो ये थी महान सम्राट सिकंदर की तीन इच्छाएं | 

4. नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों इतिहास की महान विश्वविद्यालय कहा जाता है | 

छठी शताब्दी में हिंदुस्तान सोने की चिड़िया कहलाता था| इन्हीं में से एक था तुर्की का शासक इक्तयार उद्दीन मोहम्मद बिन वक्तियाग खिलजी |  उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज था |  उस समय नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय  था  उस समय विदेशी लोग भी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे |  उस समय 10000 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे और 2000 शिक्षक गाइड करते थे |  वहां बहुत सी यूनिट थी यानी ब्लॉक था हर एक ब्लॉक में 35 विद्यार्थी थे | ऐसे बहुत सारे ब्लॉक थे |  राजगीर के आसपास के जो गांव थे उन्हें गांव से टैक्स इकट्ठा किया जाता था उसके जिम्मेदार है नालंदा विश्वविद्यालय के प्रधानाचार्य का था |  टेक्स्ट इकट्ठा कर के  जो पैसा आता था वह नालंदा विश्वविद्यालय के हॉस्टल में दिया जाता था और उसी से हॉस्टल का खर्चा चलता था |  तुर्की के  शासक बख्तियार खिलजी ने  नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी ,कहा जाता है कि यहां इतने ज्यादा मात्रा में पुस्तकें थी की यहां 6 महीने तक आग जलती रही |  हालांकि उस समय कागज नहीं होते थे पांडुलिपि होती थी यानी मोटे मोटे लकड़ी के छाल पर लिखा जाता था इसलिए इतना समय लगा जलने में | 

5. भारत के कौन ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनसे थाने में रिश्वत लिया गया था | 

चौधरी चरण सिंह एक ऐसे नेता जिन्हें आम लोगों के नेता कहा जाता था|  किसान नेता के तौर पर मशहूर चरण सिंह प्रधानमंत्री होते हुए भी बिना सिक्योरिटी के कहीं पहुंच जाया करते थे |  जी हां हम बात करने वाले हैं चौधरी चरण सिंह जी के बारे में | 

 जब थाने में रपट लिखाने पहुंचे थे चौधरी चरण सिंह 

बात सन 1979 की है जब चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे | प्रधानमंत्री बने कुछ महीने ही हुए थे तभी यूपी (UP) के कई जिले से चरण सिंह को किसानों की शिकायतें मिलने लगी | किसानों की शिकायत थी कि पुलिस और ठेकेदार उनसे घूस लेकर परेशान कर रहे हैं ऐसे में किसान नेता होने के चलते चरण सिंह जी इस समस्या का हल खुद ही ढूंढना चाहते थे |  अगस्त 1979 शाम 6:00 बजे उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में मैला कुचैला धोती कुर्ता पहने एक बुजुर्ग किसान अपने बैल चोरी की शिकायत लिखवाने उसराहार थाने पहुंचा इस दौरान छोटे दरोगा साहब ने पुलिसिया अंदाज में उनसे कुछ आड़े टेढ़े सवाल पूछने के बाद बिना रिपोर्ट  लिखें किसान को चलता कर दिया , किसान जब थाने से जाने लगा तो एक सिपाही पीछे से आवाज देते हुए कहा बाबा थोड़ा खर्चा पानी दे दो रपट लिख देंगे |  रिश्वत लेने के बाद पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की पूरा मामला लिखने के बाद मुंशी ने बाबा से पूछा दस्तखत करोगे या अंगूठा टेकोगे|  किसान बोला मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं अंगूठा टेकूँगा |  मुंशी ने कागज को किसान को दिया और स्याही वाला  पैड भी दिया  तभी किसान ने अपनी जेब से  एक कलम और एक मोहर निकाला और किसान ने मोहर  और स्याही लगाई और कागज पर ठोक दी  और कलम से साइन कर दिया चौधरी चरण सिंह |  किसान ने कागज को मुंशी को दे दिया  मुंशी ने जब कागज पढ़ा  तो देखा कागज पर प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया का मोहर लगा था | और चौधरी चरण सिंह का नाम था |  यह देख थाने में हड़कंप मच गई कि यह बाबा कोई किसान नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री हैं और इसके बाद चरण सिंह ने एक्शन लिया और पूरे थाने को सस्पेंड कर दिए | 

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